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________________ _120 : विवेकविलास जिस मनुष्य के हाथ में पालकी-यान, रथ, अश्व, गज और वृषभ-ये पाँच चिह्न रेखाकार हो तो वह मनुष्य शत्रुसैन्य को हठपूर्वक पकड़ने में सिद्धहस्त होता है। षटत्रिंशायुधफलं - एकमप्यायुधं पाणौ षट्त्रिंशन्मध्यतो यदि। तदा परैरजेयः स्याद्धीरो भूमिपतिर्जयी॥73॥ छत्तीस प्रकार के आयुधों में से यदि एक भी आयुध मनुष्य के हाथ में रेखारूप में हो तो उसे शत्रु नहीं जीत सकते और वह जयवन्त राजा होता है। जलयानफलं उडुपो मङ्गिनी पोतो यस्य पूर्णाः करान्तरे। स रूप्यस्वर्णरत्नानां पात्रं सांयात्रिकः पुमान्॥74॥ यदि नौका, मङ्गिना (छोटा नौका), पोत" (जहाज)- ये तीन चिह्न हाथ में पूर्णतः हों, तो वह मनुष्य अपने जीवन में स्वर्ण, चाँदी और रत्न इन तीनों का स्वामी और सांयात्रिक होता है। हलानुसारेणकृषीवलाः त्रिकोणरेखया सीरमुसलोलूखलादिनी। वस्तुना हस्तजातेन पुरुषः स्यात्कृषीवलः॥75॥ यदि हल, मूसल, ऊखल और त्रिकोण रेखादि चिह्न मनुष्य के हाथ में रेखारूप में हों तो वह व्यक्ति कृषीवल या किसान होता है। गोमन्तः स्युनराः सौधै( स्पष्टै!) र्दामभिः पाणिसंस्थितैः। कमण्डलुध्वजौ कुम्भस्वस्तिकौ श्रीप्रदौ नृणाम्॥76॥ * अपराजितपुच्छा में विश्वकर्मा ने छत्तीस प्रकार के आयुधों के नाम इस प्रकार बताए हैं- (1.) त्रिशूल, (2.) छूरिका, (3.) खङ्ग, (4.) खेट या ढाल, (5.) खट्वाङ्ग, (6.) धनुष, (7.) बाण, (8.)पाश, (9.) अङ्कुश, (10.) घण्टा, (11.) रिष्टि, (12.) दर्पण, (13.) दण्ड, (14.) शङ्ख, (15.) चक्र, (16.) गदा, (17.) वज्र, (18.) शक्ति, (19.) मुद्गर, (20.) भृशुण्डी , (21.) मुशल, (22.) परशु, (23.) कर्तिका, (24.) कपाल या खोपड़ी-खप्पर, (255) शिर या शत्रु का, (26) सर्प, (27.) शृङ्ग या सींग, (28.) हल, (29.)कुन्त या भाला, (30.) पुस्तक, (31.) माला, (32.) कमण्डल, (33.) शूचि या सरवा, (34.) पत्र-कमल, (35.) पानपात्र और (36.) योगमुद्रा- आयुधानोमतो वक्ष्ये नामसङ्ख्यावलिं क्रमात्। त्रिशूलच्छुरिकाखङ्गखेटाः खट्वाङ्गकं धनुः ।। बाणपाशाङ्कशा घण्टारिष्टिदर्पणदण्डकाः । शङ्खश्चकं गदावज्रशक्तिमुद्गरभृशुण्डयः ।। मुशलः परशुश्चेव कर्त्तिका च कपालकम्। शिरः सर्पश्च शृङ्गं च हल: कुन्तस्तथैव च॥ पुस्तकाक्षकमण्डलु श्रुचयः पद्मपत्रके। योगमद्रा तथा चैव षट्त्रिंशच्छत्रकाणि च॥ (अपराजित. 235, 10-13) **भोजराजकृत 'युक्तिकल्पतरु' में विविध प्रकार की नौकाओं, जलयानों का वर्णन आया है। शिल्परत्नं में नौका निर्माण की विधि आई है। सामुद्रिकतिलक में यह श्लोक इस रूप में आया है-उडुपो वा बेडी वा पोतो वा यस्य करतले पूर्णः। धनकाञ्चनरत्नानां पात्रं सांयात्रिक स स्यात् ॥ (सामुद्रिक. 1,175)
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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