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________________ समता मन में उसके प्रति दया उत्पन्न होती है वही करुणा भावना है । गरीब, अंधा, लंगड़ा, अपाहिज भिखारी, इन पर यथा शक्ति दया पूर्ण नजर रख कर उनको सहायता देना चाहिए । इसमें पात्र कुपात्र का प्रश्न नहीं है ! छोटे से लेकर बड़े जीवों पर करुणा करना चाहिए जैसे कि मार्ग में चलते हुए कीड़े, मकोड़े, मेंढक, अलसिए को बचाना, पशु पक्षी को घास दाना डालना, उनका पैर या पंख टूट गया हो तो दवा का प्रबंध करना गरीब या पीड़ित मनुष्य की आवश्यकता पूरी करना । दवा कराना । जाति पांति का भेदभाव छोड़कर उनकी भूख तरस मिटाना, सर्दी गर्मी का यथाशक्ति बचाव करना । जिसका कोई संबंधी न हो उस दीन-हीन असहाय का बंधु बन कर उसको संतुष्ट करना यह करुणा भावना है। उदासीन भावना वह है कि कोई अपनी उत्तम बात को न मानकर भी अपनी कुमति से प्राणियों का बध करता हो, चोरी करता हो, अनेक प्रकार के कुकर्म कर समाज का व धर्म का अहित करता हो फिर भी अकड़ कर फिरता हो, अतः अपने वश की बात न हो वहां उस पर मध्यस्थ भाव रखना चाहिए। अच्छा भी नहीं और बुरा भी नहीं। उसका किया वह भोगेगा क्योंकि हमारा उस पर कोई जोर नहीं है। वह सुनता ही नहीं, धर्म को मानता ही नहीं या उसका मित्र समूह प्रबल होने से उसे सन्मार्ग की अपेक्षा कुमार्ग पर ले जा रहा है इसलिए विवशता है । अपने आपको धर्माचार्य, ऋषि, मुनि, संत, साधु, तपस्वी मानने वाले कई लोग अनेक भोले व अनभिज्ञ लोगों को बातों की चतुराई से अपना अनुयायी बनाकर अपनी रूढ़ी का उपासक
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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