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________________ समता २७ सुख से सोते हैं जिस प्रकार राजा सब साधनों से घिरा हुआ सुख शय्या में सोता है। समता के सुख को अनुभव करने का उपदेश विश्वजन्तुषु यदि क्षणमेकं, साम्यतो भजसि मानस मैत्रीम् । तत्सुखं परममत्र परत्राप्यश्नुषे न यदभूत्तव जातु ॥ ८ ॥ अर्थ-“हे मन ! यदि तू एक क्षण के लिए भी सर्व प्राणियों पर समता से मैत्री भाव रखेगा तो वह सुख ऐसा होगा जिसका तूने कभी भी अनुभव नहीं किया होगा" ॥ ८ ॥ स्वागतावृत्त . विवेचन—बिना अनुभव के समता के सुख का मूल्य प्रतीत नहीं होता है । हे मन ! तूने अनेक प्रकार के सांसारिक सुखों का अनुभव किया है और तुझे उनसे खेद भी मिला है अतः परहित चिन्तन के सहित, मैत्रीभाव से सब प्राणियों की तरफ शुभ भावना रखकर देख तो सही कि कैसा अनिवर्चनीय, अपूर्व, अनन्त आनंद मिलता है । समता रखना बहुत हो कठिन है, इसका उपदेश देना या लिखना आसान है परन्तु जब स्वयं पर बीतती है उस वक्त मन समता से परे हो जाता है अतः मन को वश में करने के लिए ही समता धारण करने की अत्यंत आवश्यकता है। क्रोधरूपी बलवान योद्धा कमजोर समता को जल्दी पछाड़ देता है लेकिन बलवान-स्थायी समता क्रोध को पराजित करती है वही वास्तविक आनंद है।
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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