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________________ सुभाषित ३ श्री प्राचारांग सूत्र के छायानुवाद "महावीर स्वामीनो प्राचार धर्म से अनुवादित जगत के लोगों की कामनाओं का पार नहीं है। वे चलनी में पानी भरने का प्रयत्न करते हैं। (३-११३) कामों का पूरा होना अशक्य है और आयुष्य बढ़ाया नहीं जा सकता है। तथा कामेच्छु पुरुष विलाप करता ही रहता है। (२-६२) __ हे धीर, तू आशा और स्वछंदता को छोड़ दे। इन दोनों के शल्य के कारण ही तू भटकता रहता है। सुख का साधन, मानी हुई वस्तुएं ही तेरे दुःख का कारण हो जाती हैं । (२-८४) ___ तेरे सगे संबंधी, विषय भोग या द्रव्य संपत्ति तेरा रक्षण नहीं कर सकते हैं या तुझे बचा नहीं सकते हैं; वैसे ही तू भी उनका रक्षण नहीं कर सकता है या बचा नहीं सकता है । हरेक को अपने सुख दुःख खुद ही भुगतने पड़ते हैं । अत: जहां तक आयु मृत्यु से घेरी नहीं गई है तथा कान आदि इन्द्रियों का बल एवं प्रज्ञा, स्मृति, मेधा, आदि स्थित हैं तबतक अवसर को पहचान कर समझदार पुरुष को अपना कल्याण कर लेना चाहिए। (२, ६८-७१)
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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