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________________ . ३६६ अध्यात्म-कल्पद्रुम ज्ञानी भी सिद्धि के लिए मौन धारण करते हैं अतः हमें भी उनका अनुकरण करना चाहिए । काय संवर- कछुए का दृष्टांत कृपया संवृणु स्वांगं कूर्मज्ञातनिदर्शनात् । संवृतासंवृतांगा यत् सुखदुःखान्यवाप्नुयुः ॥ १० ॥ अर्थ – तू अपने स्वयं पर कृपा करके संवर कर । कछुओं के दृष्टांत से शरीर का संवर करने वाले और नहीं करने वाले कछुए ने क्रमशः सुख और दुःख पाया है । ( इससे शिक्षा ले) ॥ १० ॥ अनुष्टुप् विवेचन-मन और वचन की तरह से शरीर को भी वश में रखना आवश्यक है । काया की सावद्य प्रवृत्ति अनंत संसार बढ़ाने वाली है अतः काया की तमाम प्रवृत्तियां शुभ हेतु से ही करनी चाहिए । जब तक आत्मा का नियंत्रण मनवचन काया तीनों पर नहीं होगा तब तक प्राधि-व्याधिउपाधि मिट नहीं सकेंगी । जब तक पूरे शरीर की प्रवृत्तियां आत्मसाक्षी से न होंगी तब तक कर्म बंध की प्रणाली रुक नहीं सकेंगी जो शरीर से अनेक तरह की हलचलें अनि - यंत्रित रीति से करते रहते हैं उनको पूरी हानि उठानी पड़ती है । एक जंगल में दो कछुओं पर किसी हिंसक पशु की नजर पड़ी और वह उन पर झपटा। उन दोनों ने अपने अंगों को संकुचित कर लिया और वहीं स्थिर हो गए । कुछ समय के पश्चात् एक कछुए ने घबरा कर जैसे ही अपने पैर व गर्दन
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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