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________________ २०४ अध्यात्म-कल्पद्रुम आएगा ही। मनुष्य भव पाने के बाद भी बाल्यावस्था व वृद्धावस्था में तो कुछ भी धर्म साधन होता ही नहीं है। युवावस्था में मानव गृहस्थी के चक्कर में पड़ा रहता है, घर के बोझ व स्त्री पुत्र के लालन पालन की चिंता से उसे धर्म के लिए फुरसत ही नहीं मिलती है। इसके सिवाय दिन रात के चौबीस घंटोंमें से ६-७ घंटे सोने में, २-३ घंटे खाने पीने में, १-२ घंटे शौच स्नान आदि में बाकी समय व्यापार या नौकरी आदि में चले जाते हैं। इस तरह से बहुत ही लंबे समय के पश्चात (अनंत पुद्गल परावर्तन का समय बहुत ही लम्बा समय होता है गुरू महाराज से या शास्त्रों से जान लेवें) मिले हुए मनुष्य भव का तू सदुपयोग कर ले वरना दुबारा यह भव प्राप्त होना नितांत कठिन है। अधिकारी होने का प्रयत्न कर गुणस्तुतीछिसि निर्गुणोऽपि सुखप्रतिष्ठादि विनापि पुण्यम् । अष्टांगयोगं च विनापि सिद्धीर्वातूलता कापि नवा तवात्मन् ॥८॥ अर्थ तू निर्गुणी है फिर भी गुण की प्रशंसा सुनना चाहता है । पुण्य के बिना सुख और सन्मान चाहता है एवं अष्टांग योग के बिना सिद्धियों की इच्छा रखता है। तेरा पागलपन तो कोई विचित्र सा लगता है । ८ ॥ उपजाति विवेचन बड़े बड़े लोगों को मोटर में घूमते व बंगलों में रहते देखकर तू भी वैसी इच्छा रखता है परन्तु हे पुण्यहीन तेरों यह अभिलाषा वृथा है । पुण्य के बिना सुख कहां ?
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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