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________________ चित्तदमन १८१ विवेचन—संसारी जीव को सदा अनेक दुःख होते रहते हैं । वह मानता है कि शायद कुल के देवी देवता असंतुष्ट हैं या ग्रह नक्षत्र विपरीत हैं या कोई अन्य दैवी दोष है। यह सब उसकी मान्यता गलत है। यह सब उसके कर्मों का परिणाम है । कर्म मन के परिणामों से बंधते हैं, मन को वश में करना स्वयं उसके हाथ में हैं। संसारचक्र एक बार गति में आने के बाद बड़ी मुश्किल से ठहरता है। एक चक्र दूसरे चक्र को पैदा करता है, एक संकल्प दूसरे विकल्प को पैदा करता है और जन्म मरण को परंपरा बढ़ती है अतः इस संसारचक्र को रोकने के लिए दो ही उपाय हैं एक तो मन को जबरदस्ती से वश में करना और दूसरा त्याग एवं तप द्वारा उसे निर्विकारी कर देना। __ मनोनिग्रह और यम नियम वशं मनो यस्य समाहितं स्यात्, किं तस्य कार्य नियमैर्यमैश्च । हतं मनो यस्य च दुर्विकल्पैः, किं तस्य कार्य नियमैर्यमैश्च ॥५॥ अर्थ-जिस प्राणी का मन समाधियुक्त होकर अपने वश में होता है उसे फिर यम नियम से क्या लाभ ? और जिसका । मन दुर्विकल्पों से पाहत है उसे भी यम नियम से क्या लाभ ? उपजाति विवेचन–नियम पांच प्रकार के हैं। काया और मन की शुद्धि-शौच । सुलभ, प्राप्त साधनों से अधिक प्राप्त करने की अनिच्छा-संतोष । मोक्षमार्ग दर्शक शास्त्रों का अध्ययन या परमात्मा का जाप-स्वाध्याय । जो कर्मों को
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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