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________________ शास्त्राभ्यास और बरताव हैं, उनकी जीभ खेंच लेते हैं, उन्हें करौती से काटते हैं, तथा नाना प्रकार की पीड़ा देते हैं, फिर भी वे जीव मरते नहीं हैं, अनेक पीड़ाएं उठाते हुए भी उनके शरीर कायम रहते हैं। ____ तीसरी पीड़ा अन्योन्य है अर्थात पारस्परिक है । पूर्व भव के वैर को याद कर वे आपस में ही हरदम लड़ते झगड़ते रहते हैं तथा अत्यंत दुःखी होते हैं व दूसरों को दु:खी करते हैं। ___ इस गति में जाने का कारण क्रोध, अहंकार कपट, लोभ विषय की आसक्ति आदि है परन्तु हे मोहान्ध जीव ! ऐसा जानते हुए भी तुझे नरक का डर नहीं लगता है ! थोड़े समय तक मिलने वाला विषयजन्य सुख थोड़े समय में नष्ट भी हो जाता है लेकिन उस सुख से प्राप्त दुःख, सागर वर्षों तक समाप्त नहीं होता है, अब तेरी इच्छा हो उस तरह से आचरण कर ॥ तिर्यंच गति के दु:ख बंधोऽनिशं वाहनताडनानि, क्षुत्तृड् दुरामातपशीतवाताः । निजान्यजातीयभयापमृत्युदुःखानि तिर्यविति दुस्सहानि ॥१२॥ अर्थ-निरंतर बंधन, भार वहन, ताड़न, भूख, प्यास, असाध्य रोग, गरमो, सरदी, हवा, अपनी व पराई जाति का भय, अकाल व दुर्दशा से मरण ये तिर्यंच गति के असह्य दुःख हैं ॥ १२ ॥ उपजाति विवेचनमनुष्य पशुओं से अनेक प्रकार से काम लेता है, वे मूक प्राणी विवशता से सब काम करते हैं व दुःख सहते हैं । उनका जीवन मनुष्य की कृपा पर आधारित है । सूर्योदय २०
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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