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________________ विषय प्रमाद १२५ अविश्राम, भार वहन, कटे हुए, गले हुए अंगों में कीटाणु उत्पत्ति, अचिकित्सा, मानव का निर्दयपन, वृद्धावस्था में निराश्रय, गृहानिष्कासन आदि सहना पड़ता है। मानव दशा में व्याधि, वृद्धावस्था, दुर्जन मनुष्य का संसर्ग, दुष्ट का प्रकोप, इष्ट-वियोग, अनिष्ट-योग, धन हरण, स्वजनमरण, परवशता, कामनाओं की अतृप्ति आदि सहना पड़ता है। देव गति में, इंद्र का आज्ञा पालन, ईर्षा, आयु क्षीण जानकर रुदन, क्रंदन, एवं अन्य गति में जाने की चिंता आदि सहना पड़ता है। इन चारो गतियों के व गर्भावस्था के दुःखों को जानने के बाद भी जो प्रमादादि द्वारा शुभ कार्य नहीं करता है उसकी दशा उस बैलगाड़े वाले की तरह होती है जो अपने गाड़े के पैयों, धुरी, बैल आदि को न संभालता हुवा केवल भाड़े के लोभ से गाड़े को हांकता रहता है और बीच जंगल में धुरी टूटने से रोता है, जहां कोई उपाय नहीं है। अतः विषय त्याग कर आत्म हित करना श्रेष्ठ है, वरना उस गाड़े वाले की तरह का अरण्य रुदन निरर्थक जाएगा। मृत्यु-भय, प्रमाद त्याग वध्यस्य चौरस्य यथा पशोर्वा, संप्राप्यमाणस्य पदं वधस्य । शनैः शनैरेति मृतिः समीपं, तथाखिलस्येति कथं प्रमादः ॥६॥ अर्थ जैसे फांसी की सजा पाये हुए चोर की, अथवा वधस्थल पर ले जाते हुए पशु की मृत्यु, धीरे धीरे नजदीक
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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