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________________ ७३) सिद्धान्तसार. कालेज कहीये; केमके तेतो जव पंदरमां नियमा मुक्ति जाय. हवे जो पेहेला जांगामां मिथ्यात्वी देशथकी श्राज्ञानो खाराधक होय तो, करलीना करवावाला सर्व जीव पंदरमे जवे मुक्ति गयाज जोइए, पण ए न मले. ए न्याये पेले नांगे नवदिक्षित् तथा गीतार्थ साधुने श्री वीतरागदेवनी श्राज्ञानो आराधक जाणवो. ए चार जांगा द्रव्य-ज्ञान, दर्शन, चारित्र, श्री अव्यमां तथा द्रव्य लींगी मां पण होय बे; पण हयां तो श्रीवीतरागदेवे द्रव्य अने नाव ए बन्ने बोलो श्राश्री चार जांगा कह्या दीशे बे. माटे जिनाज्ञानो आराधक साधु, ते पेहेले नांगे जावो. हवे तेरापंथी, पेहेले जांगे मिथ्यात्वीने देशथकी श्रज्ञाना धारा धक ए वास्ते देबे के, आज्ञामांहेलो धर्म आराधे तेनेज पुन्य बंधाय श्राज्ञाबादार पुन्यनो बंध मात्रता नथी. तेथी मिथ्यात्वीने पहले जांगे कहे. हवे जुर्ज ! पेहेले नांगे मिथ्यात्वीने श्राज्ञानो आराधक कहे, तेनी श्रद्धा चोथा जांगामां जम्मूलथी जुठी देखाय बे. तेनो न्याय कहे :- हे देवानुप्रय ! सर्व चोरासी लाख जीवाजोनने निर्जरा होय दें, ने समे समे पुन्य बंधय बे, पण एवो कोइ जीव नथी के जेने निर्जरा न चाय, के पुन्यन बंधाय. ए लेखेतो निगोदादिकमां सर्व जीवने निर्जरा थाय बे, पुन्य बंधाय बे, ते पेहेला जांगामां आव्या. बीजा नांगामां वृति समदृष्टिने कहोबो, अने त्रीजे नांगे साधुजीने कोबो, तेमज श्रावकने पण केता दशो. ए सर्व संसारत्था जीव तमारे लेखेतो त्रण नांगामां खावी गया. हवे चोथा जागामां कया जीव रह्या ? ते बतावो . त्यारे जवाबदेवा श्रसमर्थ. वली चोथा जांगावाला जीवने जगवंते सर्व विराधक ( श्राज्ञाबाहार ) कह्या बे, तेने तमारे लेखेतो निर्जरा याय नहीं, तेम पुन्य पण बंधाय नही. दवे संसारमां एवा तो कोइ जीव नथीं के जेने पुन्य न बँधाय. ए न्याये चोथा जांगावाला जीव श्राज्ञाबाहार वे अने श्राज्ञाबाहार पुन्य बंधय बे. हवे जे श्राज्ञाबाहार पुन्य बंधा नथी मानता, लेमने सूत्रबल पुरुं देखातुं नथी वली जेम गहुं साथै पराल (खाली) पाय, तेम श्राज्ञामांदेला धर्मनी साथे पुन्य बंधा माने, ते लेखेतो कोइ
SR No.022232
Book TitleSiddhant Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGambhirmal Hemraj Mehta
PublisherGambhirmal Hemraj Mehta
Publication Year1908
Total Pages534
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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