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________________ +सिद्धान्तसार.. (४४) ध्यान-तप कराव्या विना सूत्र संजलावो बो. ए प्रजुनी श्राज्ञाना विराधक केम था बो? . वली तुंगिया नगरी प्रमुखना श्रावक आदि अनेक श्रावकोने " लझठा गहियही पुबियहा इत्यादिक” पांच बोल कह्या ले. ते श्रावकोए सूत्र पाउना अर्थ लाध्या डे, ग्रह्या तथा अर्थ पुगी पुडीने निश्चे निर्णय कर्या ने, इत्यादिक पांच बोलना जाण श्रावकने कह्या जे. त्यारे जु ! सूत्र-पाठ शिख्याविना अर्थ शो रीते सुधारशे ? कया पाठनो अर्थ पुबीने निर्णय करशे ते कहो. कदाच जो नव तत्वादिकना जाणपणा उपर पूर्वोक्त पांच बोल उतारशो तो नव तत्वना बोल चाल जीव अजीवना जाणपणानुं वर्णन तो पेहेलांज कर्यु , पनी समकितना गाढापणानुं वर्णन कर्यु , अने पनी विशेष सूत्रना जाणपणा श्राश्री ए पांच बोल कह्या बे. जेम जगवती सूत्रना ११ मा शतकना११ मा उद्देशामां, माहाबल कुंवरनी माताए सिंह, स्वप्न दोढुं त्यां स्वप्नपाठकने बोलाव्या. त्यां पहेलां तो निमित्त शास्त्रना सूत्र पाठ श्रने अर्थना जाण कह्या ; श्रने पडी राज्य सनामां मांहोमांही चोलणा करीने प्रश्न पुडीने विशेष निर्णय कर्यो, त्यां 'लझठा गहियठा' इत्यादिक पांच बोल कह्या बे; पण जेम ए स्वप्न पाठक स्वप्न शास्त्रना पाठ अने अर्थ बनेना जाग , तेम श्रावक पण सूत्र अने अर्थ बनेना जाण. एम सूत्रपाठमा गम गम श्रावकने सूत्र नणवां कडं दीसे बे. तमे मतने लोधे सुत्रमा कह्यां ते वचन केम नथापो हो ? वली तेरापंथो, नव तत्वमां पांच तत्वने तो एकान्त नये जीव कहे जे अने चारने अजोव कहे . ते एकान्त नय परुपे . तेमां एक तो जोवने जीव कहे अने अजोबने अजीव कहे . ते अजीवतो अजीव ज. ए बे तत्व तो मुलगा . शेष सात तत्वमां-पुन्य, पाप अने बंध, ए अपने अजीव कहे बे, अने श्राश्रव, संवर, नीरा श्रने मोद, ए चारने जीव कहे . हवे पुन्य, पाप अने बंध, ए त्रणने एकान्त अजीव कहे बे; पण सूत्र नां गम गम व्यवहार नय श्राश्री पुन्य, पार
SR No.022232
Book TitleSiddhant Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGambhirmal Hemraj Mehta
PublisherGambhirmal Hemraj Mehta
Publication Year1908
Total Pages534
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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