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________________ सिदान्तसार (४५७.) लागे. अंग एक वर्षमा दा दस माया-स्थानक शेवे तो सग सबलो दोष लागे. नावार्थः-या पाठमां एम कयुं के, एक महीनामांत्रण नदी अने एक वर्षमा दस नदी उलंघे तो सबलो (जबरो) दोष लागे. हवे जुङ ! नदी उतर्यामां धर्म होय तो महीनामां त्रण नदी नतर्याथी न. वमो सबलो दोष केम कहे ? अने वर्षमां दस नदी उतरे तो १ए मो सबखो दोष केम कहे ? जो धर्म होय तो वारंवार हर्ष करीने नतरतुं जोइए. तेवारे तेरापंथी कहे जे के, महीनामांत्रण नदी उतरे तो सबलो दोष कह्यो, पण बे नदी तरे तेमां तो धर्म . तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! महीनामां बे नदी नतर्यामां आशा धर्म क्या कह्यो ? श्री जगवंते तो ज्ञानादिकनी जतनाने अर्थे नाषा टालीने कल्प उखखाव्यो . जेम श्रावकने साधु कहे के, अणगल पाणी पीवामां तथा त्रसजी. घने हण्यामां मोटुं पाप बे. हवे गलेडं पाणी पीतुं बाकी रह्यं तथापांच स्थावरनी हींसा करवी बाकी रही तेमां साधुनो श्राझा-धर्म नथी.जेम अण बगएयुं पाणी पीवा करतां बाएयु पाणी पीवामां अने त्रस-कायनी हिंसा करतां पांच स्थावरनी हिंसामा पाप थोड़ें, पण धर्म तो नथी; तेम महीनामां त्रण नदी उलंघे तो तथा वर्षमां दस नदी उसंधे तो सबलो दोष लागे कडं. हवे महीनामां बे नदी अने वर्षमा नव नदी उलंघवी बाकी रही. तेमांत्रण नदी तर्यामां सबलो दोष , तेनी अपेक्षाये बे नदी उतरवामां नबलो दोष जे. ए जगवंते तो जाषा टालीने कम्पनी विधि उलखावी बे; पण एम तो नथी कह्यु के “ हे साधु ! महीनामां तुंबे नदी नलंघजे. मारी श्राज्ञा .” वली कदाच महीनामांत्रण नदी उलंघवो वर्जी, तेथी तमे बे नदी उलंघवामां थाझा धर्म मानता हो तो, दसमा सबला दोषमा एक महीनामां त्रण माया स्थानक (कपटा) सेवे तो सबलो दोष लागे कथु बे; तथा वर्ष दीवसमां दस माया-स्थानक सेवे तो वीसमो सबलो दोष लागे कडं जे. हवे तमा केहेणीने लेखे तो महीनामा बे नदी उतर्यामां श्राझा
SR No.022232
Book TitleSiddhant Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGambhirmal Hemraj Mehta
PublisherGambhirmal Hemraj Mehta
Publication Year1908
Total Pages534
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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