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________________ (३५०) + सिद्धान्तसार.. बोजा श्रुतष्कंधना बोजा श्रध्ययनमा त्रण पद कह्या ले. अधर्म पक्षमा मिथ्यात्वी श्रव्रती अने अपचखाणी १, धर्म पदमां साधुजी सर्व पा. पना त्यागी २, श्रने मिश्र पदमां श्रावक ३. तेमां श्रावकने तो मिश्र पके धर्माधर्मी कह्या. ए त्रण पदना वर्णवनो घणो पाठ . ते सूयगमांगमां जोश लेवो. त्यां श्रावकने धर्मी, सुवति, आर्य श्रने एकान्तं साचा साधु कह्या . पड़ी त्रण पदना वे पद कर्या. एक धर्म पक अने बीजो अधर्म पद. त्यां नदय-जाववर्ती अवगुणतो तुबसमान, ते गोषतामा राखो गएया नही, अने कयोपशमनावना गुण मेरुसमान, ते मुख्यतामा गण्या. ते माटे श्रावकने विशेष पदे धर्म पकमां गएया ने. हवे जु ! ए पाठमां श्रावकने साधु, धर्मी, सुत्रति अने श्रार्य कह्या में; अने तमे कुपात्र कहाबो, तो पूर्वोक्तगुण कुपात्रमा शो रीते होश शके ? वास्ते श्रावक सुपात्रज ले. वल। नववार सूत्रमा साधु श्रावक बनेना गुण (बिरद) सरखा कह्या जे. ते श्रावकना गुणनो पाठः सेजेश्मे गामागर णगर जाव सनिवेसेसु मणुया नवंत्ति तं० अप्पारंना अप्पपरिग्गदा धम्मीया धम्माणुया धमिहा धम्मरकाश्यं धम्मपलोइ धम्मपलधणा धम्मसमुदायारा धम्मेणं चेव वित्तोकप्रेमाणा सुसोला सुवया सुपमिया-णंदा साढू ॥ - अर्थः-से० ते जे इ० ए गा गाम, अगर, नगर जा यावत् स० 'ससीवेषने विषे म मनुष्य श्रावक न होय तं ते जेम डे तेम कहे बे. अ० थोमा आरंनी अण्पा अल्प परिग्रहावंत, पण लोकोत्तर पक्षी श्रुत चारित्र सहित ने धरा धार्मिक ध० श्री वीतरागना धर्मनी के चाले धाम धर्म वहालो ले जेने धम्म शुद्ध धर्मना परुपक डे (सुबुझि प्रधान वत्) धम्मपण धर्मने विषे वारंवार नजर राखे ध० धर्मने रंगे रंगाणा तथा सजावंत ध धर्मने को उखन्नो दक्ष न शके ध० धर्मने विषे हर्ष सहित आधार के जेनो ध० अखंग व्रत पचखाण पालता थका विप्रा.
SR No.022232
Book TitleSiddhant Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGambhirmal Hemraj Mehta
PublisherGambhirmal Hemraj Mehta
Publication Year1908
Total Pages534
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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