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________________ ASNA (४४) सिदान्तसार एवो पाठ डे अने वा शब्द वचमां बे. इहां तो माहण शब्दनो अर्थ साधुनोज इशे, कारण के केवलज्ञान तो श्रावकने नपजतुं नथी.” तेनो उत्तर. हे देवानुप्रोय ! गणायांग गणे त्रोजे नद्देशे चोथे त्रण प्रकारना जिन कह्या :-उहीनाणंजाणं १ मनपर्यवनाणंजीणं केवलनाणंजीणं ३. एज रीते त्रण शारिहंत केवल कह्या -अवधानो केवली १, मनपर्यवज्ञानी केवली २, अने केवलज्ञानी केवली ३. ए अवधज्ञानीने के वली कह्या ने ते अवधज्ञान श्रावकने पण नपजे ले ते माटे. इहां पण माहण शब्दनो अर्थ 'वा' शब्द वचमा डे माटे श्रावकज थाय; श्रने श्हां तो समचय समण मादणने केवल उपजे कयुं जे. वली ज्यां पांचमुं के. वलज्ञान उपन्यु कयु, त्यां तो 'कसिणे पमिपुने निरावरणे अपमिहय केवल वरनाणदंसणे समुपजेजा.' एवो पाठ बे. वली एवोपाठ एक कार्यमां कोई सुत्रमा दीसतो नथी के समणंचा मादणंवा शब्दमां साधुनोज अर्थ थाय अने श्रावकनो न थाय; पण 'वा' शब्द वचमां होय श्रने एक कार्यनो पुग होय त्यां माहण शब्दनो अर्थ श्रावकज थाय. ए सूत्रनो न्याय जोतां साध श्रावकने दाननां फल लांज कह्यां दीसे २. वली सूयगमांग तथा नववाद सूत्रमा एवो पाठ ले के, एगंतसमेसुसाहु एटले श्रावकने एकान्त पदमां जला साधुज कहीये. हवे साधुने दान दीधामा लान थशे तो श्रावकने पण साधु कह्या डे, तेमने दीधामां लान केम नही थाय ? तेवारे तेरापंथो कहे जे के “इहां तो मादण शब्दमां समचय श्रावकनो श्रर्थ कयों ने. त्यारे तो बधाए श्रावकने दान दीधामा साधुना दान सरखां फल कहो. पमिमाधारीनेज केम कहोडो ?” तेनो उत्तर. हे दे. वानुप्रीय ! दानना पाठ कह्या त्यां बधा पाठमां तहारुवं समणंवा माहएंवा एवो पाउ . ते तथारुप समण ते साधु नधो, मुहपत्ति, वस्त्र, पात्रां सहित स्वलिंगी; अने तथारुप माहण ते पमिमाधार। श्रावक, तेने प्रासुक एषणिक चित बेतालीस दोष रहित दाननी पुडा . ते माटे पाममाधार। श्रावक संन्नवे बे; अने सुजता दाननो सेवावालो अने सम.
SR No.022232
Book TitleSiddhant Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGambhirmal Hemraj Mehta
PublisherGambhirmal Hemraj Mehta
Publication Year1908
Total Pages534
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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