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________________ ( १९०) + सिदान्तसार.. वि० विशेष प्रधान दि० समकितरुप दृष्टि का कल्याणनो हेतु मंण् मंगलीकनो हेतु प० हर्ष पामवानो हेतु वि० मोटा पामवानो हेतु र० र. कानी करणहारी सि सिझने रेदेवानुं मंदोर अ० आश्रय नथी जेमां के केवलनी राज्यधानी सि नपअव रहित स० रुमीरीतनी प्रवर्तावक सी० सुझाचारनो हेतु सं० संजमनो हेतु सी० सीलन घर सं० पापथी पारमाने संवर ते गु० अशुन जोगनुं गोपवq ते व० निश्चे लाजनो व्यापार न० उंचो पदार्थ ज नाव यग्य आ० सर्व गुणनो श्राश्रय जग यतना म प्रमादनुं निराकरण आग आस्वासनुं स्थान वि० विश्वासन स्थान श्र० पोतानी श्रात्माथी कोश्ने नय न उपजाववो ते स० सर्व जीवने अ-मारी चो मूलथीज चोकी, प० सदाय पवित्र, सु० मखनी टालणहारी पू० तीर्थकरादिकनी पुजा विण्मल रहित प्रजा जेनी निक अतिशय निर्मल इति. ए नाम. ए० ए आदि अनेक नि० पोताने गुणे नि० निपजाव्यां प० गुण निष्पन्न नाम हो होय. अ० थहिंसा न जगवतीना ए०एन० जगवती अ जीवदया जाणवी. .. जावार्थ:-हवे जुन ? दयानां साठ नाम कह्यां, ते गुण निष्पन्न अकेकुं नाम कयुं . हवे त्रण करण त्रण जोगथी जीवने हणे नहिं तेतो अहिंसा दयानुं नाम पेहेबुं निप. हवे एए नामना न्यारा न्यारा अर्थ कहो. दया, अनुकंपा, करुणा, वीसासो आसासो अमोघाए अने खंती केने कहोये ते कहो. हे देवानुप्रीय ! दया तो त्रण करण अने त्रण जोगथी प्राणीने बचावे तेने कहोयें. साधुजीए त्रिविधे शहिंसाना त्याग कर्या तेने अहिंसा कहीये. पांच सुमति अने त्रण गुप्तिनो खप करता विचरे तेने संजम जतना कहोये. कारणके चारित्र, संजम, संवर बने यना न्यारां न्यारां कह्यां डे; अने ए चारनां श्रावरण पण न्यारा न्यारां कह्यां जे. शाख सूत्र नगवती शतक ए में उद्देशे ३१ में, असोचाकेवलीना अधिकारमां. ए न्याये जीव हणवाना त्याग तेतो चारित्र, तेने अहिंसा कहीये. बचावे तेने दया जतना कहीये. पांच सुमति ने अण गुप्तिमा प्रवर्तवं तेने संजम कहीये. जीवना जीवीतव्यनी श्राशा:
SR No.022232
Book TitleSiddhant Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGambhirmal Hemraj Mehta
PublisherGambhirmal Hemraj Mehta
Publication Year1908
Total Pages534
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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