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________________ + सिद्धान्तसार शुक्ल एत्रणने धर्म लेश्या कही .शाख सूत्र नत्तराध्ययन श्र०३में ते पाठः कन्हा नीला काो तिणिवि एयाओ अहम्म लेसाओ एयाहिं तिम्हिवि जीवा उग्ग ओववव ॥५६॥ तेज पद्मा सुक्का तिणि वि एयाओ धम्म लेसाओ एयाहिं तिएिंदवि जीवा सुग्गइं उववद्याश् ॥ ७ ॥ अर्थः-कण कृष्ण नी नील, अने का कापोत, ए ति त्रण श्रण अधर्म ले लेश्या बे. ए० ए ति त्रणे जी जीवने पु० उर्गति न० उपजावे. ते तेजु प० पद्म, अने सु० शुक्ल ति० ए त्रण ध धर्म लेप लेश्या जे. ए ए ति० त्रणे जी जीवने सुण्शुज गति उ उपजावे. नावार्थः-हवे जु! एत्रण अधर्म-लेश्या कही. ए श्रधर्म-लेश्याथी पुर्गतिमां उपजवू कडं बे, अने साधुजीनेतो एकान्त-धर्मी कह्या जे. ते अधर्म पामे नहिं अने दुर्गतिमां पण जाय नहिं. तेथो साधुजोमां नावे त्रण जली लेश्या होय. हवे तमे कहोबो के, साधुजीमांत्रण अधर्मसेश्या होय. ए तमारे लेखेतो साधुजीने धर्माधर्मी केहेवा जोइए. ज्ञान, दर्शन ने चारित्र आश्रीतो धर्मी, अने कृश्नादिक अधर्म-लेश्या श्राश्री अधर्मी, एम धर्माधर्मी साधुजी थया. पण वीतरागदेवेतो साधुजीने एकात-धर्मी कह्या ले. शाख सूत्र जगवती, नववाइ, सुयगमांग आदि अनेक सूत्रमा तथा कर्मग्रंथमां पण साधुजीमां लेश्या त्रण कही . तेजु, पन अने शुक्ल. तमे श्राटला सूत्रनी वीतरागदेवनी वाणी उन्नापीने साधुजगवंतमां नावे उ लेश्या केम कहोडो ? वलोलगवंतमां तोऽव्ये पण त्रण नली लेश्याज होय, कारण के नगवंतना सर्व पुद्गल शुन्न होय . शाख सूत्र उववाजी. हवे जु ! नगवानना शरोरना वर्ण, गंध, रस अने स्पर्श सर्व शुन्न होय अने कृष्णादिक त्रण माठी लेश्याना वर्णादिकतो माहा अशुज कह्या अने नली त्रण लेश्याना शुज कसा छे. प्रतीत्रण मावी नाव लेश्यानां लक्षण खोटां कमां ने अने,
SR No.022232
Book TitleSiddhant Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGambhirmal Hemraj Mehta
PublisherGambhirmal Hemraj Mehta
Publication Year1908
Total Pages534
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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