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________________ शतपदी भाषांतर. (२५) इहां पहेलां परिवार नहि कह्यो पण वांदणावेला अतिदेशना बळे जेम परिवार लीधो छे तेम पांच भाभिगमन पण लई शकाय छे. आ अतिदेशव्याख्या टीकाकाराने संमतज छे. जे माटे भगवतीटीकामां पर्षदा नीकली ए पदे करीने उववाइसूत्रनो ते संबंधे चालेल बधो आलावो लीधो छे. (११) पूनमीया पक्षना वर्धमानमूरिए पोताना करेल कुलक. मां मुखवखिका सिद्ध करवा मंडाण करेल छे. तेमा सात युक्तिओ करी छे तेमांनी छर्नु तो ऊपर खंडन थई चूक्युं छे. सातमी द्रव्यकीतनी युक्तिनुं आगल करशुं. पण ए कुलक करनार ऊपर. आ एक मोहोटो दोष रहे छे के तेणे आवश्यकचूर्णिमा रहेला भावारकशब्दने फेरवीने तेज चूर्णिना नामे पंगुरण शब्द लख्यो छे. ए कुलकनी सातमी युक्ति ए छे के साधुए द्रव्यकीत तथा भावक्रीत आहार न लेवो एम सूत्रमा कर्तुं छे. त्यां द्रव्यकीत ते ए के मुखयस्त्रिकादिक द्रव्य श्रावकने आपीने आहार लेवो. माटे ए ऊपरथी श्रावकने मुखवस्त्रिका ठेरे छे. एर्नु उत्तर ए छे के ए गाथामां लखेल द्रव्य क्रीत आहार करवा लायक छ के नाई ? जो करवा लायक नथी तो मुखवत्रिका शाथी सिद्ध थशे? वळी जो कोई कुयति के कुश्रावक तेम करे तो तेथी मुयति सुश्रावकने शुं आव्यु ? . (१२) वळी जो कोई विवाहचूलिका के व्यवहारचूलिकाना पाठ बतावे तो तेने ठगज जाणवो केमके ते ग्रंथोज आजकाल नथी. (१३)वळी कोई पिंडनियुक्तिनी "निम्मलगंध"गाथामा रहेल पुत्ताइ शब्दे मुखवस्त्रिका जणावे तोते गेरवाजबी जाणवं.केमके मळयगिरिए पोतशब्दे नाना बाळकने लायकनां वस्त्रनां कटकां कहेलां छे.
SR No.022231
Book TitleShatpadi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasinhsuri
PublisherRavji Devraj Shravak
Publication Year1895
Total Pages248
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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