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________________ शतपदी भाषांतर. छेज. तेमज इरियावहि पण साधुना पडिकमणानो एक देशज छे तथा उपधान वहेतां इरियावहिमूत्र प्रतिक्रमणश्रुतस्कंध कहेवाय छे तथा खमासमणां तो उत्तरासंगथी पण देवाइ शकाय छे अने खमासमण अने वांदणामां एटलोज फेर छे के खमासमण ते नानां वांदणां अने वांदणां ते मोहोटां वांदणां. माटे वांदणां पण उत्तरासंगे दइ शकाय. माटे जेम साधुओ अनशनपर्यंत सकलक्रिया रजोहरण, मु. खवस्त्रिका, अने चोलपट्टारूप पोतानी मुद्राए करे छे तेम श्रावकोए पण सकळ क्रिया पोताना उत्तरासंगरूप मुद्राए करवी. वळी सिद्धर्षिकृत उपमितभवप्रपंचमां एक राजानी वात आवे छे त्यां राजा बोल्यो छे के देवकृत सुवर्ण कमळमां बेशीने धर्मदेशना करता मार मे दीठा त्यारे हुं पांच राजचिह्न ऊतारी उत्तरासंग करी सूरिना अवग्रहमा पेठो. त्यां मूरिने द्वादशावर्त्त वांदणाथी वांदी तथा अनुक्रमे बीजामुनिओने वांदी आशीर्वाद पामी शुद्धभूमिमां परिवार सहित बेठो. माटे इहां खुल्लो उत्तरासंग कह्यो छे. तथा कोइएक चिरंतन आचार्य आवश्यकमीमांसा नामे ग्रंथ टीका सहित कर्यो छे. त्यां श्रावकने मुखवस्त्रिका माटे खुल्लो निषेध कर्यो छे. तेमज अरहन्नकश्रावके वहाणमां उपसर्ग थतां सागारि अणसण, अने प्रदेशी राजाए अणसण कर्यो छे त्यां पण मुखवस्त्रि का तथा स्थापनाचार्य वगरज तेमणे अणसण लेवा द्वादशावर्त* वांदणां, अणसण, तथा आलोचना करी छे. वळी चित्रसारथिए केशिकुमारनुं आगमन सांभळी आसनथी उठी केशिकुमारने वंदन कयुं छे, इहां पण उत्तरासंगज छे. तथा वरुणनागनत्तुए संग्राममां जतां संथारो साथे लीधो तेम
SR No.022231
Book TitleShatpadi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasinhsuri
PublisherRavji Devraj Shravak
Publication Year1895
Total Pages248
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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