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________________ (१८) शतपदी भाषांतर. वळ वांदणा देतां पचीश बोल साचववानुं कहां छे त्यांत्रीजो बोल यथाजातमुद्रा छे. ते वे प्रकारे छे - एक योनिनिष्क्रमणरूप, अने बीजी व्रतमतिपत्तिरूप त्यां पहेली मुद्रा ते ए के " खमणिजो भे किलामो" ए पाठ कहेतां मस्तके अंजळि करवी. ए मुद्रा चतुर्विध संघ समान छे. अने बीजा प्रकारनी मुद्रा दरेक वर्गने जूदी जूदी रीते छे. त्यां साधु रजोहरण, चलोटो, अने मुखवास्त्रका घरी व्रत ले, साध्वी गुरु पासेथी व्रत लेतां चौद उपकरण घरे अने गुरुणी पाथी लेतां पांच उपकरण घरे. श्रावको तथा श्राविकाओ पांच अभिगम साचवी व्रत ले. माटे चारे वर्गे पोतपोतानी यथाजातमुद्राए वांदणां देवां.' वळी बीजा पंचाशकमां गुरु पासे व्रत लेवा जवानी विधिनी व्याख्या करतां श्वेत वस्त्र पेहरीने श्रावक गुरु पासे आवे त्यारे व्रत देवां कां छे सां एम नथी जणाव्युं के उत्तरासंग ऊतारी मुखवत्रिका ले सारे देवां अने तेथी हमणा पण सर्व पक्षोमां श्रावकश्राविकाओने पोतपोतानी उत्तरासंगादिक मुद्राओ छतांज सम्यक्त्व तथा देशविरति अपाती देखाय छे. वळी बाळकधी मांडीने श्रावको उत्तरासंगे करीनेज देव वांदे छे, गुरुओने नमे छे, सम्यक्त्व तथा देशाविरति ले छे, तथा देपूजादिक धर्मकरणी करे छे तेमज इरियावहिपडिकमणुं तथा पचखाण वगेरापण उत्तरासंगथी कराय छे तेम षडावश्यक पर्ण उत्तरासंगधीज करवामां शी बाधा छे. कोइ कहेशे के कासग, चडवीसत्थो, अने पचखाण उत्तरासंगधी पण थइ शके पण प्रतिक्रमण, वांदणां, अने सामायिक तेनाथी केम थाय ? तो तेणे जाणवुं के सामायिकमां पण शीतथी रक्षण करवा पटीनुं ग्रहण कराय माटे त्यां पण वस्त्रांचळ
SR No.022231
Book TitleShatpadi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasinhsuri
PublisherRavji Devraj Shravak
Publication Year1895
Total Pages248
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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