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________________ ( १७८) शतपदी भाषांतर. चखाण पण कर, जोइये. जुओ एज चूर्णिमां अन्यस्थळे कह्यु छ के केत एवं घरनुं नाम होवाथी संकेत पचखाण ते गृहस्थमा पचखाण जाणवा. अथवा पचखाण पूरुं थतां पण ज्यां लगी अमुक चिह्न कायम होय त्यां सूधी नहि जq एम संकेत करवो ते संकेत पखखाण. — अंगुष्टश्रावक पोरसी लइ खेतरे जतो हतो. त्यांथी पाछु आवतां रसोइने तैयार थतां वार होय तो अपचखाणी नहि रहेवा सारं तेटलो वखत अंगुठो बाली बेशतो. एलकाक्षनी उत्पत्तिमा वात आवे छे के एक श्राविका मिध्यादृष्टिने परणाववामां आवी ते त्यां सांजे आवश्यक करती अने पचखाण लेती. . माटे इहां विधिमा जो के पचखाण नथी तोपण स्थळांतरथी ते आवेज छे. [अल्पविधि छे तो शुं थयुं ?] ___ इहां कोइ बोलशे के आ आवश्यकनी विधि तो बहु थोडीज छ माटे तेमां केम आस्था आवे. तेने ए उत्तर छे के ए विधि थोडी छतां पण जेटली छे तेटली श्रुतधरोए कहेल होवाथी प्रमाणभूतज छे. ___ वळी तमे जो ए करतां अधिक विधि सूत्र, नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि, वृत्ति तथा टिप्पनकना अक्षरे श्रावक माटे सिद्ध करी आपो तो ते पण अमे मान्य करीशुं. इहां कंइ अमने खोटो हठ नथी. वळी इहां थोडाझाझानी चिंता करवी घटेज नहि. किंतु पूर्वश्रुतधरोए जे जेटलुं भांख्यु होय ते आगम प्रमाणे तेटलुंज निःशं. कपणे करतां थकां छमस्थ आराधक थाय छे. बाकी स्वबुद्धिए हीन के अधिक करतां तो दोषज थाय. माटे सिद्धांतमां कहेली क्रियाज श्रद्धवी तथा करवी घटे छे.
SR No.022231
Book TitleShatpadi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasinhsuri
PublisherRavji Devraj Shravak
Publication Year1895
Total Pages248
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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