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________________ शतपदी भाषांतर. (१७५) __ कोइ बोलशे के त्यारे तमारा मानवा प्रमाणे पण वस्त्रांचळथी प्रमार्जनाज करवी ठेरशे पण हवे वांदणा शावडे देवा ठेरावशो तेने ए उत्तर छे के सूत्रमा कयु छे के “पांच अभिगमे करीने सामा जइने वांदे" तेथी वांदणा उत्तरासंगवडेज सिद्ध थाय छे. ___ इहां कोई कहेशे के चूर्णिमां जे पोत शब्द छे तेनो अर्थ अमे मोपतीं करशुं. तेणे जाणवानुं छे के आगममा बधे स्थळे मोपती माटे पुत्ति शब्दज वापरेल देखाय छे, पण पोत शब्द वापरेल नथी. किंतु सिद्धांतमां ठेकाणे ठेकाणे पोत शब्द सामान्य कपडाना अर्थेज वापरेल छे माटे पोत शब्दनो अर्थ मोपती थई शके नहि. (वांदणा.) कलम ४ थीमां आलोयणा लइ वांदवानुं लखेल छे . त्यां "वांदवा" एटले “द्वादशावर्त्तवांदणावडे वांदवा" एमन समजवू. केमके एज ग्रंथमां तथा ग्रंथांतरे द्वादशावर्त वांदणाना स्थळे स्पष्ट रीते "वंदई" शब्द वापरेल देखाय छे. . (वा शब्दनो अर्थ.) । कोई पूछे के कलम ६ ठीमां लख्यु छे के “साधु के चैत्यना अभावे पोसहशालामां के घरेज सामायिक वा आवश्यक करे." इहां वा शब्दनो अर्थ रॉ करवो? तेने ए उत्तर छे के साधु पासे के चैत्यमां जइ आवश्यक करवानी विधिमां मुख्य तफावत एज देखाय छे के साधु के चैत्यनायोगे घरेथी सामायिक उच्चरी यां जइ शेष आवश्यक करे अने पोसहशाळा के घरे एकज ठेकाणे रही सामायिक तथा आवश्यक करे. आ रीतनो संबंध विचारतां वा शब्द विकल्पार्थी नहि पण समुच्चयार्थीज रहेल छे, तेथी तेनो "तथा" एवो अर्थ थाय छे.
SR No.022231
Book TitleShatpadi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasinhsuri
PublisherRavji Devraj Shravak
Publication Year1895
Total Pages248
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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