SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 192
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १७२) शतपदी भाषांतर. कपडं) ए ऊतारवा. बीजा आचार्य एम कहे छे के मुगट पण ऊतारवं. ए सामायिकनी विधि. . . Here विचार १११ मो. (ऊपरला पाठनो अर्थ). ऊपरला पाठमां कलम पेलीमां चार स्थळे "सर्व" करवानुं कमु छे त्यां सर्व एवा मोघम पदथी सर्व आवश्यक समजवा, का. रण सर्व ए सामायिकनुं विशेषण करीये तो ते घटी शके नहि. तेमज अनंतरनी बीजी कलमथी आवश्यकनी विधि कहेवानी रहेल छे तथा सर्व ए आवश्यकनुंज विशेषण घटे छे. कलम बीजीथी “आवश्यक"नी प्रस्तावना करी छे. सां आवश्यक शब्दे फक्त सामायिकज लेवू एम थाय नहि, केमके ए मोघमशब्द वपरातां छए अध्ययन आवे छे. जे माटे अनुयोगद्वारमां आवश्यकने माटे "छ अध्ययननो वर्ग'' एवो पर्याय आपेल छे. - वळी इहां चूर्णिमां “आवस्सयं करेंतो ति" एम लख्युं छे त्यां इति शब्द प्रस्तावना अर्थेज वापरेल देखाय छे. अने पंचाशकनी टीकामां अभयदेवमूरिए पण आ बाबत एवी पदरचना करी छे के "आवश्यक करतो थको जो साधु पासे ते करे तो त्यां आ विधि छे." आ वाक्यमा आवश्यकने प्रस्तुत करेल होवाथी जणाय छे के अभयदेवसूरिना विचारमा पण चूर्णिमां वपरायेल इति शब्द प्रस्तावनार्थीज लाग्यो होवो जाइये. कोइ एम बोले के आ दंडकमां शरुआतथीज सामायिक प्रस्तुत करेल छे अने अंते पण “ए सामायिकनी विधि" एम कहेलुं छे. छतां वच्चे षडावश्यक केम आवी पडयुं तेनुं ए उत्तर छे
SR No.022231
Book TitleShatpadi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasinhsuri
PublisherRavji Devraj Shravak
Publication Year1895
Total Pages248
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy