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________________ ( १२०) शतपदी भाषांतर. दोराथी बांधी लेतां प्रथमना फळ जेवीज थइ रहे छे. — हवे साध्वीओना माटे एवी विधि छे के साध्वीओ जे क्षेत्रमा रहेनार होय ते क्षेत्रने पहेलां साधुओए पोते जइ भावित करवं. ते ए रीते के त्यां जइ साधुओए गृहस्थोने कहेवू के अमने कापेलां फळ आपो. कदाच गृहस्थो कहे के कापेलां तैयार नथी त्यारे कहेवू के कापी करीने आपो. एम कहे छते कदाच गृहस्थ कहे के अमे एटली पंचात नथी जाणता, तमारे जोइता होय तो आखा ल्यो त्यारे गृहस्थना वासणमांज फळ रह्यां छतां साधुओए पोते फळो कापी करी पछी वोरवां. एम कर्याथी गृहस्थोने मजबूत विचार ठसाय के एमने वगर कापेला नथी खपता माटे हवे कापीने देशुं. एम ज्यारे भावित क्षेत्र थाय त्यारे साध्वीओने त्यां मोकलाववी. हवे साधुओ कदाच न होय अथवा कोई कारणमा रोकायला होय तो साध्वीओमां जे स्थविरसाध्वीओ होय तेमणे पेहेलां जइ ऊपरनी रीते क्षेत्र भावित करवं. कदाच क्षेत्र एबुं होय के जे भावितज नहि थई शके तो सारे कापेलां नहि मळतां गृहस्थ पासेथी कपाववां के छेवट पोतेज ते. मनी आगल कापीने पछी वोरवां. ___ कदाच एम करतां वेला अतिक्रम थती होय तो स्थविर आर्याओए अविधिए कापेलां के अणकापेलां फलो लेवां अने तरुण साध्वीओए तेवां फळ नहि लेतां विधिभिन्न फळ अने भातपाणीज वोर. ए विधिए गोचरी करी वसतिना दरवाजे ठेरीने त्यांजे वगर . कापेला के अविधिए कापेला फळ होय ते विधिभिन्न करी पछी वसति अंदर आवq. कदाच दरवाजे ठेरवानी जग्या न होय तो वसतिमां आवी तेवां फळ गुरुणीने सोपवा एटलें गुरुणी विधिभिन्न करे.
SR No.022231
Book TitleShatpadi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasinhsuri
PublisherRavji Devraj Shravak
Publication Year1895
Total Pages248
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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