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________________ शतपदी भाषांतर. (११९) वळी ज्ञातामां धर्मरुचिए तुंबडं वोर्यु कयुं छे. निशीथमां कां छे के "एकला पचावेल पदार्थ बे प्रकारना छे:-एक आचीर्ण एटले आचार्यपरंपराथी लेवाता आवेल जेवा के चीभडां तुंबी वगेरा, अने बीजा अनाचीर्ण एटले आचार्यपरंपराथी वर्जाता आवेल जेवा के सूरणकंदादिक. कोइ कहेशे के ए अचित्त छतां अनाचीर्ण केम थया त्यां एम जाणवानुं छे के अग्निशस्त्रथीउपहत पवां पण अनाचीर्ण गणाय छे तो फलनी लांबी चीरेली फाळो के जे घणे भागे अशस्त्रोपहतज छे ते अनाचीर्ण थाय तेमां शुं कहे." आ स्थळे अशस्त्रोपहतनो निषेध कर्यो ते पण उत्सर्गापेक्षाए जणाय छे कारण के शरुआतमां अशस्त्रोपहत आचीर्ण पदार्थोनी तो अनुज्ञा आपी छे. विचार ९५ मो. प्रश्नः-साधु के साध्वी फल वोहोरावे ते बाबत शास्त्रमा केवी विधि कहेल छे ? उत्तरः-ज्यारे बहुफळवंत देशमां साधुने जवू पडे त्यारे, अथवा दुकाळ, मुशाफरी, अनिर्वाह, मांदगी, के तथाविधपुरुपादिकना कारणे फळ लेवां पडे त्यारे ते बाबत निशीथ अने कल्पचूर्णिमां नीचे मुजब विधि बतावी छे. साधुओने भावथी अग्निपाकादिके करी अचित्त थएल अने द्रव्यथी विधिभिन्न के अविधिभिन्न एवां सर्वे फळ लेवां कल्पी शके. त्यां विधिभिन्न ते जे आडांअवळां काप्यां होय अने अविविभिन्न ते जे केळां वगेर फळो ऊभी फालो करी सरखी रीते काप्यां होय कारण के तेवी फाळो पाछी भेगी करी शळी के
SR No.022231
Book TitleShatpadi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasinhsuri
PublisherRavji Devraj Shravak
Publication Year1895
Total Pages248
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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