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________________ शतपदी भाषांतर. ( ११५ ) माटे परमार्थ एछे के निपुणपणे बरोबर चितवतां जो दोपनो संभव जणाय तो अवश्य ते वातनो परिहार करवो, बाकी अशुद्धिना संभव नहि छतां मात्र इहां घणा अवसन्ना बहोरे छे एटला थकीज ते कुलनो परिहार करवानी जरुर नथी. विचार ९२ मो. • प्रश्नः - तमारा श्रावको प्रसिद्ध चैत्यवंदनथी चैत्य केम न थी वांदता ? उत्तरः—आगममां श्रावकना चैत्यवंदननी विधि एटलीज कही छे के एकसो आठ काव्य कहीने शक्रस्तव कहेवो. वळी चैत्यवंदनभाष्यमां कहां छे के केदलाएक आचार्य एम कहे छे जे जीवाभिगममां विजय देवताना स्थळे, रायपसेणीमां सूर्याभना स्थळे, ज्ञातामां द्रौपदींना स्थळे, तथा जंबूदीवपनतिमां शकेंद्रे शक्रस्तवथीज वंदन कर्युं छे. मादे ए आचरणाना प्रमाणथी तथा एथी अधिक विधि सूत्रोमां गणधरोए बतावेल नहि हो - वाथी श्रावक शक्रस्तवथीज चैत्यवंदन करे. आ स्थळे टीकाकारे बारी घणी उक्तियुक्तिओ बतावी छे, तोपण मूळमां जे लख्युं छे जे एथी अधिक विधि गणधरोए बतावी नथी ते वातथी भा - ष्यकारे पण एकसो आठ काव्य साथै शक्रस्तवथीज चैत्यवंदन समर्थित करेल जणाय छे. वळी आवश्यकचूर्णिकार पण एम लखे छे जे " जो चैत्य होय तो पहेलुं चैस वांदे अने पछी इरियावही पडिकमे " आ ऊपरथी जणाय छे के चूर्णिकारने पण जीवाभिगमादिकमां कहेल चैत्यवंदनविधि अभिमत लागे छे. वळी विचार करो के इहां चू
SR No.022231
Book TitleShatpadi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasinhsuri
PublisherRavji Devraj Shravak
Publication Year1895
Total Pages248
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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