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________________ ( २५९ ) नहीं ?' यह प्रश्न साधक के चञ्चल चित्त को साधना में स्थिर करने के लिये है । ३. उक्ति के दोनों ही अंश सत्य हैं । किन्तु 'हे साधक ! तू कर्मबन्ध को फलवान मानकर, कर्मक्षय के उपायों को निष्फल मानता है - यह सही नहीं हैं । ४. जब साधक कषाय आदि के क्षय के परिणाम लाने का अभ्यास करता है, तब उनका कषाय-क्षय रूप फल अवश्य ही प्रकट होगा ही - यह श्रद्धा कर । ५. अशुभ परिणाम से कर्म-बन्ध होता है । किन्तु वे बद्ध कर्म तत्काल ही फल प्रदान नहीं करते हैं । उनकी स्थिति पूर्ण होने पर ही प्रायः वे फल प्रदान करते हैं । वैसे ही कर्मक्षय के उपाय भी परिणाम रूप होने पर भी वैसे उत्कर्ष के स्तर पर पहुँचकर ही कर्मक्षय रूप फल प्रदान करते हैं । ६. 'वैसे अशुभ परिणाम - जनित कर्म सफल है, वैसे शुभ परिणाम-जनित साधना भी सफल ही है' ऐसी श्रद्धा होने पर साधना से विरत होने के परिणाम कैसे आयेंगे ? ७. योग शुभ और अशुभ ही होते हैं - शुद्ध नहीं । साधना योगजनित या योगाश्रित होती है । अतः सैद्धान्तिक मत से साधना शुभयोग ही है । इस परिच्छेद का उपसंहार एवं मुणित्ता विवि उवाए, तेहि करिता सवसे कसाए । लन्भंति जीवा पसमं गुणेय, तम्हा मुणी खिप्पमुवेइ मोक्खं ॥ ६५ ॥ इसप्रकार ( साधक) जीव विविध प्रकार ( कषायों को वश में करने ) के उपायों को जानकर और उनके द्वारा कषायों को अपने स्वाधीन करके प्रशम भाव को गुणों ( = मूल और उत्तर गुणों) को प्राप्त करते हैं (अत: मुनि बन जाते हैं और कषायों को वश में करने के लिये अप्रमत्त बनते हैं ) इसकारण से वे मुनि मोक्ष को जल्दी ही प्राप्त करते हैं । टिप्पण - १. कषाय -वशीकरण के उपाय गुरुजन का विनय करके उनसे श्रवण करें । ऐसा ही योग नहीं हो तो स्वयं विनय पूर्वक तद्विषयक ग्रन्थों को पढ़ें और फिर चिन्तन करके उन उपायों को उपलब्ध करे अर्थात् उन्हें
SR No.022226
Book TitleMokkha Purisattho Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmeshmuni
PublisherNandacharya Sahitya Samiti
Publication Year1990
Total Pages338
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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