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________________ ( ५५ ) जड ते जड अने चैतन्य ते चैतन्य ए भेदर्नु परिवर्तन थतुं नथी तेम अनादि उपरोक्त भेदोर्नु पण परिवर्तन न ज संभवे. तथा जीवात्मा सर्वज्ञपणुं प्राप्त करवाने जे त्याग, तप, दान आदि करे ते अने तेम करवानो उपदेश अर्पनार शास्त्रो विफल ज मानवा जोइये. जे वस्तु मलवानी नथी तेना माटे जे परिश्रम करवो के उपदेश आपवो ते निष्फल ज गणाय-वंध्या जेवो जाणवो. अज्ञानावस्थामांथी अल्पज्ञपणुं अने तेनी उत्क्रान्ति थतां प्रखरज्ञानीपणुं आपणे अनुभवीये छीये, तो तेना क्रमिक उत्क्रान्तिवादमां सर्वज्ञपणुं श्रात्मा प्राप्त करे ए मानसिक गूढ अनुभवने पण आपणे केम मिथ्या मानवो घटे ? निदान के-अंधकार पछी कंइक प्रकाश अने उषा त्यारबाद क्रमशः प्रकाश वधता धीरे धीरे अंधकार जगतमांथी दूर थाय छे ने पश्चात् सर्वथा सूर्यनो प्रकाश ज देखाय छे. एवं आत्मा पण अंतरना अंधकारने दूर करी सर्वथा ज्ञानरूप प्रकाशने प्राप्त करे ए वात अनुभवमां आवे तेवी छे. सर्व प्रात्माोने सर्वज्ञपणुं अनादिनुं आविभूत होय ए मान्यता संबंध वगरनी मालुम पडे छे. तथा पृथ्वीनो जे भाग व्यवहारमा जणाय छे तेटली ज पृथ्वी नथी किन्तु पडदा पाछल आ सिवायनी बहोळी पृथ्वी अवश्य छे ए वात तो आजे जडवादीयो पण कबूल करे छे. जे देशो पहेलां व्यवहारमा होता जणाता ते देशो व्यवहारमा आवते साथ ज शीवायना देशोनी शोध करवानी पाश्चात्योने लालसा वधी. क्रमे क्रमे ज्या ज्या ते लोको पहोंची
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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