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(४९) बनावे छे. एटले तरवार पकडनार निर्बळ छतां तरवारनी सहायता पामी स्वात्माने समर्थ माने छे, मारामां अन्यने मारवानी शक्ति छे. हुं बलवान् छ एम मिथ्या अनुभव करे छे एक प्रकारनो विचित्र जुस्सो अनुभवे छे, एवं आत्मा पण जे जे भावो पोताना स्थायी नथी ते ते कर्मकृत भावोने कर्मना संबं. धथी पोताना माने छे स्वपणे अनुभवे छे. तत्तत्भावनो अभिमानी बनी कमोथी भिन्न पोतानुं रूप विसरी जइ कर्मे बनावेल रूप तेज पोतालु स्वरूप छे एम समजे छे, श्रद्ध छे, आथीज अनेकधा आत्मा विविध भवोमां पर्यटन करे छे, अभिमानिक मान्यता आत्मा पोतामा रहेल अनादि रागद्वेषादि दोषोना कारणथी ज अनुभवे छे ने कर्मोने बांधे छे. तथा संसारपर्यटन करे छे, एवं कर्मो रागद्वेषादिमय आत्माने बनावे छे तथा रात्रद्वेषादिको कर्मरूप आत्माने बनावे छे. ए रीते अन्योन्याश्रयी अनादि संबंध प्रात्मा तथा कमानो प्रवर्ने छे. फरी ए अभिमानिक मान्यताने खोटा रूपमां ज्यारे आत्मा देखे छे बराबर श्रद्धे के. कर्म अने पोतानुं रूप भिन्नपणे माने छे त्यारे ते कर्मोने खसेडवा अने पोतार्नु परमार्थ रूप पामवा प्रयत्न करे छे, परिणामे सर्व कर्मने अलग करी स्वस्वरूपी मुक्त-सिद्ध थाय छे. ___ अतएव अहीं उपरोक्त कर्म भाववानुं तथा छूटवानुं कारण ग्रंथकार महर्षि एक ज वाक्यमां बहु सुंदर रीते दर्शावे छे" हिंसाहिंसादि तद्धेतुः" हिंसा, जूठ, चोरी, मैथुन,