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________________ (४४) वस्तु संबंधी संशय उद्भवतो नथी, “ नास्त्यात्मा"ए वाक्य पण श्रात्मानो एकान्त निषेध करतुं नथी, किन्तु " नास्ति भत्र घट:" "पा स्थानमां घट नथी" ए वाक्य जेम-एतत् भूमि विशिष्ट घटनो प्रभाव दर्शावे छे परंतु सर्वत्र घटनो अभाव दर्शावतुं नथी. अर्थात् ए वाक्यथी अन्यत्र घटनी सत्ता सिद्ध थाय छे. एवं उपरोक्त वाक्य पण अमुक शरीर अथवा इंद्रियोमा आत्मा नथी एज भाव दर्शावे छे, परंतु सर्वत्र आत्माभाव दर्शावतुं नथी. निदान के-एक स्थानमा संशय थवाथी त्यां संशयी आत्मा जेम सिद्ध थाय छे तद्वत् अन्यत्र पण ज्यां ज्यां तदाकार संशय उद्भवे त्यां त्यां आत्मा छे एवं अनुमान चोकसपणे प्रवर्ते छे. प्रत्यक्ष अने अनुमान प्रमाणथी आत्मानी सिद्धि थवाथी उपमान अने आगम प्रमाणथी आत्मा सिद्ध ज छे एटले तेने समजाववानी कांइ विशेष जरुर रहेती नथी; कारण केउपमान प्रमाण तेना पाछल ज गमन करे छे अने पागम प्रमाण तो 'अस्थि मे आया उववाइये' इत्यादि वचनोथी आत्मसत्ता पोकारी पोकारी वारंवार कहे छे. आ रीते युक्ति तथा प्रमाणोद्वारा आत्मा बराबर सिद्ध होवाथी जे शास्त्रो नास्तिक पतनी भावना दूर करी आआत्मतत्त्व, कयन करता होय तेज आगमवाक्य ग्राह्य थाय. अतएव अहीं पण भगवान् हरिभद्रमूरिजी आगमतत्त्वनी परीक्षानो नियम दर्शावता वदे के के-"आत्मास्ति" 'आत्मा छे' अर्थात् जैनदर्शनमा
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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