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________________ (३२) मूलार्थ-जे प्रत्यक्ष आदि प्रमाणोथी भने इष्ट एटले प्रागमना पोताना ज वचनोवडे अविरुद्ध होय, एवं उत्सर्ग तथा अपवाद युक्त होय, तथा ऐदंपर्य-परमार्थवडे शुद्ध होय तेज खलं पागमतत्त्व जाणवं. स्पष्टीकरण-आगमतत्वनी कसोटी करवा अहीं हरिभद्रमूरिजी खरो मार्ग दर्शावे छे. अत्रस्थ श्लोकमां हरिभद्रमूरिजी प्रागमतत्त्वनी परीक्षा माटे त्रण प्रकारो जणावी उत्तरना वे श्लोकथी तेनुं विवेचन करे छे. अहीं अागमतत्वनी परीक्षाना मुख्य त्रण विभागो कहे छे. या त्रण विभागो पा रीते जाणवा-जे आगमतस्त्र दृष्ट अने इष्ट बन्ने रीते अविरुद्ध वाक्य होय १, उत्सर्ग अने अपवादयुक्त होय २, तथा ऐदंपर्यवडे परिशुद्ध होय ३. ___ दृष्ट, एटले प्रत्यक्ष, अनुमान आदि प्रमाणो, अने इष्ट एटले आगम मा बन्नेनी कसोटीमां जे आगमोक्त तत्त्व अविरुद्ध होय, एकवाक्य होय. परमार्थ ए के भागममां प्रात्मा, कर्म, बंध, मोक्ष विगैरे पदार्थों कह्या छे. श्रा पदार्थोनी प्रथम प्रत्यवादि प्रमाणद्वारा परीक्षा करवी, यदि ते परीक्षामा जो ते ते पदार्थों बराबर सिद्ध थाय, अविरुद्ध मालुम पडे तो जते तत्त्व सयुक्तिक कहेवाय. श्रा वात समजवाने आपणे दाखला तरीके आत्मानो ज सामान्य विचार करीये. शास्त्रमा "अस्थि मे भाया उववाइए " " एगे माया" मारो आत्मा उत्पत्ति धर्मवान् छे." इत्यादि कयुं छे. मात्मा-एटले चैतन्य
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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