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________________ (३७३) वर्तमानतीर्थना स्वामी तरिके होय ते काले ते तीर्थंकरनी मूर्त्ति बीराजमान करवी तेनुं नाम समयज्ञो व्यक्त्याख्य नामे प्रथम प्रतिष्ठा कहे छे. " प्रतिष्ठाभेदो "5 स्पष्टीकरण - पहेला लोकमां " त्रण प्रकारनी प्रतिष्ठा " एम जणाव्युं हतुं, तेना साथे संबंध राखनार आ बीजो श्लोक छे. अहीं त्रण प्रकारनी प्रतिष्ठाना नामो जणावी ग्रंथकर्ता उत्तरार्धथी पहेली प्रतिष्ठानुं स्वरूप दर्शावे छे. व्यक्ति, क्षेत्र तथा महा-एम त्रण प्रकारनी प्रतिष्ठा शास्त्रमां सिद्धान्ततत्ववेत्ताओ कहे छे. व्यक्तिनो अर्थ अमुक ज नामविशिष्ट पदार्थ अर्थात् जेम अनेक मनुष्यना टोळामां " देवदत्त " एवी संज्ञाविशिष्ट एक मनुष्य, क्षेत्र एटले अमुक स्थान अथवा भागमा रहेनार अगर थयेल एवा अनेक मनुष्यनुं टोलुं अने महानो अर्थ संपूर्ण भूभागमां निवसनार मनुष्यनो समूह. अहीं एज भावने लगतो भावार्थ शास्त्रकर्त्ता त्रण प्रकारनी प्रतिष्ठामां दर्शावे छे, तेमां पहेली प्रतिष्ठानुं स्वरूप आ प्रमाणे:" व्यक्तिप्रतिष्ठा " - जे काले जे तीर्थंकरनुं शासन वर्ततुं होय ते काले ते तीर्थंकरनी हयातीमां अथवा पछी ज्यां सुधी अन्य तीर्थंकरनुं शासन चालु न थाय त्यां सुधी ते शासन - नायकनी मूर्त्ति भराववी तेनुं नाम व्यक्तिप्रतिष्ठा. जेमके वर्तमानमां महावीर
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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