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________________ ( ३६४) मुख्य जो के मोचफल के तो पण आनुषंगथी स्वर्गादिनी संपत्ति तो अवश्य प्राप्त थाय ज; परंतु ते काइ साध्य नथी ज्यारे लौकिक कार्यमा साध्य तरीके स्वर्गादि संपत्ति ज मानी छ एटले तेथी मोक्षप्राप्ति थाय नहीं. प्रधान तथा प्रानुषंगिक फलनुं स्पष्टीकरण करवा ग्रंथकर्ता दृष्टांत दर्शावे छे. कृषिकरण इव पलालं, नियमादत्रानुषंगिकोऽभ्युदयः॥ फलमिह धान्यावाप्तिः, परमं निर्वाणमिव बिम्बात्॥७-१६ ।। मूलार्थ-जेम खेडुतोने कृषिकर्मर्नु मुख्य फल धान्यप्राप्ति अने गौण फल ते घासप्राप्ति थाय के तेम अहीं जिनबिंबथी मुख्य फल मोक्षफल-मोक्षप्राप्ति अने स्वर्गसंपचिनो लाभ घास तुल्य भानुषंगिक फल जाणवू. " स्पष्टीकरण" मुख्य पानुषंगिक फल माटे दृष्टांत-दान्तिकनुं साम्यकरण आचार्यश्री ा प्रमाणे अहीं घटावे छे. कृषिकर्ममां जेम धान्यप्राप्ति ए मुख्य फल अने पलालप्राप्ति ए भानुषंगिक फल मान्युं छे, तेम जिनबिंब आदि
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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