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(३६१) अर्पनार कार्य दर्शावे छे. अगर स्वर्गादि संपत्ति अर्पनार कार्य कहे छे. ____लौकिक कार्य" अभ्युदय फल आपनार थाय एम कडं पण लोकोत्तर कार्य क्या फलने आपे ए जणाव्युं नहीं माटे तेनो खुलासो हवे करे छे. लोकोत्तरं तु निर्वाणसाधकं,
परमफलमिहाश्रित्य ॥ अभ्युदयोऽपि हि परमो,
भवति त्वत्रानुषंगेण ॥ ७-१५ ॥ मूलार्थ-अहीं उत्कृष्ट फल तरीके लोकोत्तर फलमोक्षफलनी प्राप्ति थाय ते, अने अभ्युदय फल एटले स्वर्गसंपत्नो लाभ थाय ते; परंतु लोकोचर फलप्राप्तिना मध्यमा अवश्य स्वर्गादिक ऋद्धिरूप गौण फल तो आनुपंगिकपणे थाय ज. " स्पष्टीकरण "
आ श्लोकनो भावार्थ उपरना श्लोकना विवरणमां अमे कही आव्या छीए, मात्र विशेष एटलुंज के मुख्य भने गौण एम के प्रकारे फलो थाय. तेमां लोकोचर कार्यनुं मुख्य फल मोक्षप्राप्ति थवी ते, तथा लौकिक कार्यनुं मुख्य फल स्वर्गसंपत्तिनो लाम थाय ते. लोकोत्तर कार्यमां साध्यतया