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(३४७) कहेवाय%; ए तो प्रपंची भक्ति ज कहेवाय. पाम निषेध करवार्नु खलं कारण शास्त्रकर्ता उत्तरार्धथी दर्शावे छे. "सर्वापायनिमित्तं ह्येषा" आ अप्रीति ज सर्व अपायो-अनर्थोनु मुख्य निमित्त छ अर्थात् जगतना सर्व कार्योनो प्रलय करनार प्रथम अप्रीति मानी छे, केमके ज्यां अप्रीति थइ एटले मन खिन्न थाय अने मन खिन्न थवाथी उत्साह, बल, धैर्य, प्रमाद ए सर्व त्रुटी जाय. भाम थवाथी परिणामे कार्यनो नाश थाय, माटे अहीं मा अप्रीतिने शास्त्रकाए पापिष्ठा भने सर्व अपायोनुं मूल मानी कह्यु के-हितार्थी भविक आत्माए मंदिर भने जिनबिंब करावता कारीगर साथे कदापि असंतोष वधे तेवी रीते वर्तवू नहीं.
ज्यारे उपर दशांच्या प्रमाणे कारीगर' ने अप्रीति थाय तेम न वर्तवू एम कडं, तो कारीगर पासेथी करावनारे क्या प्रकारे काम लेवू ? ा प्रश्नना उत्तरमा करावनारे प्रथमथी कारीगरने संतोषी तेम ज सुष्टु परिणामवान् करी तेना पासे जिनबिंब करावq ए ज शास्त्रशैलीए उचित मान्युं छे. ए ज वातनी भहीं ग्रंथकर्ता भाविकोने शिक्षा अर्पे छे.
अधिकगुणस्थेनियमात्,
कारयितव्यं स्वदौ«देर्युक्तम् ॥