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काल पानी एकान्त कर्मनो चय करी शके, एडले शास्त्रोत विधि बराबर पालन करे छे. निदान एज के मंदिरादि कराववामां जेटली मावनी पवित्रता, विधिशुद्धता होष तेटलुंज फळ प्राप्त थाय.
चित्तनो विनाश न थाय तेम वर्तवानुं का तेनी ज पुष्टि माटे ग्रंथकार फरीने अधिक दर्शावे छे.
अप्रीतिरपि च तस्मिन्,
भगवति परमार्थनीतितो ज्ञेया॥ सर्वापायनिमित्तं
ह्येषा पापा न कर्तव्या।। ७-७॥ मूलार्थ-कोइ पण कारणथी मंदिर तथा बिंब करावनार यदि कारीगर साथे अप्रीति करे तो परमार्थ न्यायथी ते अप्रीति जिनेश्वरदेव पर करी कहेवाय, कारण के कारण पर अनीति ते कार्य पर अप्रीति कहेवाय. अतएव सर्व अपायो मूल भने पापीष्टा एवी अप्रीति ने करवी ए ज उचित छ. " स्पष्टीकरण"
कारण पर द्वेष-अप्रेम करवो ते कार्य पर अप्रेम कर्यो कहेवाय एको न्याय के. मानो भावार्थ एवो के के जेम घट