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________________ (३४३ ) अथवा घृणानी नजरे देखे छे; माटे अहीं ग्रंथकर्ता जणावे के के चित्तभंग न थाय एवो संजोग मळवो दुर्गम के तथा ते ज कार्यनो सिद्धिकारक थाय के. भाटलो विस्तृत निर्देश कर्या पछी ग्रंथकर्ता • जिनबिंब' बनाववामा प्रथम भावनी खास आवश्यकता अने एज प्रधान छे, एवो खुल्लो उल्लेख दर्शावे छे. यावन्तः परितोषाः, कारयितुस्तत्समुद्भवाः केचित् ॥ तविम्बकारणानीह, तस्य तावन्ति तत्त्वेन ॥ ७-६ ॥ मूलार्थ-जे जे प्रकारना अने जेटला संतोष, प्रसनता विशेष सद्गुणो करावनारने जिनबिंबथी उत्पन्न थाय तेमाथी केटलाक संतोष परिणामो तेज करावनारने परमाथैथी जिनबिंब कराववाभा कारणभूत बने. "प्रतिष्ठाकारके भाव केवो राखवो ?" स्पष्टीकरण-जैन शास्त्रोए सर्व अनुष्ठानोमां मुख्यतया भाव-हदयोवास एकान्त पवित्रतम फलदायी मान्यो छे, कारण के “जे जे क्षणमा प्रात्मा जेवा जेवा परिणामोने धारण करे ते ते समयमा प्रात्मा शुभ अगर अशुभ कर्मनो बंध करे छे." आम उपदेशमालामां कयुं छे. तेमज " यस्मात्
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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