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________________ ( २६४ ) श्रागमवचनमां एवी कइ अलौकिकता रही छे के जेना माटे अधिक संसारीने तेनी श्रद्धानो निषेध जखान्यो, तथा ' लोकोत्तरतव ' प्राप्तिना पण अनधिकारी गण्या १ श्रा प्रश्नना समाधान माटे आगमवचननी प्रशस्तता ग्रंथकार जाहेर करे छे. आगमवचनपरिणतिभवरोगसदौषधं पदनपायं । तदिह परः सद्बोधः सदनुष्ठानस्य हेतुरिति ॥ ५-९ ॥ मूलार्थ - श्रागमवचननी परिणति पटले यथार्थपणे आगमोक्त पदार्थनो प्रतिभास या प्रतिभास अपाय - दोष रहित संसाररूप रोगनो नाश करनारुं औषध छे, अतएव श्रा यथार्थ उत्कृष्ट बोध - पदार्थज्ञान सुंदर अनुष्ठानने जन्म वामां कारणभूत कयुं छे अर्थात् तेथी सुंदर अनुष्ठाननी प्राप्ति थाय छे. " स्पष्टीकरण " " - मर्यादया, गम्यन्ते - पदार्थाः प्राप्यन्ते ज्ञायन्ते येन यस्मात् यस्मिन्निति आगमः तस्य वचनं " " जेथी जेनाथी जेना विषे मर्यादापूर्वक पदार्थों जाणी शकाय तेनुं नाम आगम, अने ते आगमनुं जे वचन तेनुं
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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