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(५) लोकोत्तरतत्त्वप्राप्तिषोडशकम्
आगला प्रकरणमां धर्मतत्त्वोना जे जे लिंगो कह्या तेथी अात्मा सामान्य प्रकारनो धर्म पाम्यो एटलं ज जाणी शकाय, एवं सामान्य गुणो पण आत्मा पाम्यो छे ए पण अोळखी शकाय. निदान ए के-उपरना प्रकरणमां धर्मतत्व पाया पछी जे गुणो प्राप्त थाय तेज गुणसमूह नीतिथी चालनाराओ पामी शके छे, परंतु एटला मात्रथी या आत्मामो तात्त्विक धर्म पाम्या एवो निर्णय केम करी शकाय? कारण के नीति अने लौकिक धर्म पामेल प्रात्माश्रोमां पण "औदार्य" आदि भिन्न भिन्न भावो घणा अंशे होय छे. एटले सामान्य दृष्टिए " तात्विक धर्म " अने " लौकिक धर्म " पामेला आत्माअोनो भेद पाडवो असाध्य छे, अतएव प्रभु हरिभद्रसूरिजी श्रा पांचमा प्रकरणमां "तात्त्विक धर्म" पामेल प्रात्मानो "ताखिक धर्म" ना प्रभावथी क्या विशिष्ट गुणो प्राप्त करे भने क्या विशिष्ट गुणोथी आत्मा " ताश्विक धर्म " पाम्बो छे ए जाणी शकाय एवं क्या विशिष्ट गुणो विना " ताश्विक धर्म " मो अमाव के एम निर्मय करी काय इत्यादि भावो समजावया माटे विस्तारथी "लोकोत्तरतत्त्वप्राप्ति"तुं स्वरूप दावे छे.
एवं सिद्धे धर्मे
सामान्येनेह लिंगसंयुक्त।