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(२२७) चेल मनुष्यने धर्मना साधनो तथा धर्म क्यांथी उपलब्ध थाय ? हेतु ए के-तेने स्वमे पण स्वहितनो विचार पाववो अशक्य के. ____ा स्थले रावणर्नु चरित्र हितार्थीने मनन करवा जेवूछे. रावण एक समर्थ राजाधिराजनुं पद धारवा साथे विधाताने पण टकोर करनार महाप्रज्ञाशाली हतो. जेनां बुद्धि-चातुर्य
आगल ब्रहस्पति सरीखायो पण सेवक समान मनाया हता, जेनी दक्षता अने बलिष्टता पासे दैत्यो तथा राक्षसो थरथर कंपित थता हता, जे नीतिशाली होइ प्रजानुं वात्सल्यभावथी पालन करतो हतो, आवो समर्थ अने चतुर छतां ज्यारे सीता प्रति तेनुं मन ललचायुं त्यारे ते सर्व भान भूली गयो, खस्त्री के परस्त्री, कार्य के अकार्यनो विचार रह्यो नहीं, नितान्त तेना ज ध्यानमां दुर्बळ थवा लाग्यो. छेवटे पापनो, अनीतिनो, लोकलज्जानो, अपकीर्ति विगेरेनो भय त्याग करी सीताने पोताने त्यां उठावी लाग्यो अने तेनी साथे पोतानी वासना तृप्त करवाने घणाये गोथा खाधा. अंतमां वासना पूरी थइ नहीं, कोइनुं मान्यु नहीं, सर्वथा भ्रष्ट थयो अने पोतानी पाछळ जगत पर सदाने माटे अपकीर्तिनो पुंज राखी गयो. ___ आ सर्व स्थितियो उपर कहेल अतिविषयतृष्णानुं ज कार्य समजवू. अतएव ग्रंथकार आ तृष्णाने 'पापविकार' गणी धर्मी आत्मामां आनो अभाव जणावे छे, तेम ज खास श्लोकमां जणाव्यु छ के-' विषयेष्ववितृप्तात्मा' आ