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( २१६) क्षिक छे. आवा मनुष्यो ज परिणामे स्व तथा परने अत्यंत धर्मसिद्धिना फलने अर्पण करे छे. निदान ए के-दंभ अने अठवर्तन वगरना मनुष्यो जे काइ अल्प पण धर्म आचरे ते निर्मलभावथी सेवे छे, आथी तेओ थोडा धर्माराधनथी पण घणा ज फलने पामे छे, तथा अन्य प्रात्मानो तेवायोनी क्रिया देखी प्रशंसा-अनुमोदना करी अंतमां ते ते क्रियानो तेयो स्वीकारे छे. एटले वस्तुतः तेत्रो धर्म ज पामे छे, कारण केयद्यदाचरति श्रेष्ठः , तत्तदेवेतरो जनः। स यत्प. माणं कुरुते, लोकस्तदनुवर्तते ॥१॥ " प्रतिष्ठित जन जे जे कार्योने आदरे ते ते कार्योर्नु अनुकरण इतर-प्राकृतजन करे, तथा तेश्रो जेने प्रमाणतया माने तेने ज इतरजना अनुसरे." सामान्यतः अल्पज्ञजनो पोतानाथी अधिक बुद्धिमानना कार्यों तरफ वधारे विश्वास राखे छे. हेतु ए छे के-तेश्रोमां विशेष बुद्धि, हिम्मत अने लाभालाभनो विचार करवानी शक्ति अल्प होय छे, तथा बहुधा पावा लोकोनी दृष्टि अन्यतुं अनुकरण करवानी वधारे टेवायेली होय छे. एटले अन्यना अनुमोदनीय कार्यो अवलोकी अावा लोको पोतानी सरल मतिथी तेनुं अनुमोदन करी तेवा उंचा कार्योमां धर्मीयोनी पाछल पाछल थोडी थोडी गति करे ने परिणामे अल्पज्ञजनो पण उत्तम जनोना वर्तनना आधारे पोतानुं हित परंपराए सिद्ध करे छे. अतएव उपदेशको, गुरुजनो अने प्रख्यात कीर्तिनायको माटे शास्त्रकाए कथन कर्यु छे के यदि आ लोको जो थोडं