SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 219
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २०८ ) " फरीने तेवा पापो बने नहीं, अन्यथा 'कुंभारना मिथ्यादुष्कृत' नी माफक पश्चात्ताप कर्या पछी पण ते पापो सेवाय तो ते पश्चात्ताप दंभ ज गणाय. या पश्चात्ताप पण लक्ष्मणा साध्वी ' नी माफक अशुद्ध मनथी न करवो, किन्तु 'सम्यक्परिशुद्धचेतसा' ए पदथी अंतःकरणानी सर्वथा पवित्रवृत्तिथी ज करवो. ते पण एकाद वखत करवामां आवे अने पछी बिसरी जवाय तो संमार्जन कर्या वगरनुं शस्त्र जेम काट खाइ जाय तेम ते करेल पश्चात्ताप पण नकामो थाय. आ हेतुथी कर्ताए मूलमां ' सततम् ' ए पद प्राप्युं के, अर्थात् - शस्त्रार्थी पोताना हथियारनी नित्य संभाल करे छे तेम पापथी बचवा माटे पूर्वना पापोनी नित्य शुद्ध मनथी गर्दा कर्या करवी. नुं कारण ए के - अनादिथी आत्मानी टेव विपरीत कार्यो करवानी ने पोतानुं अहित करनार पदार्थोना संयोगोमा रहेवानी पडेली छे, आाथी जो तेने थोडो पण अवकाश मले तो पापना परिचयमां आवता विलंब न थाय भगवान् वर्द्धमान् प्रभु गौतमस्वामी प्रति एज कारणथी 'समयं गोयम मा पमायए' ए उपदेश कर्यो. मूलमां 'तु' अने ' तथा ' ए शब्दो तथाप्रकारे पापनो निषेध बतावनार मुख ने हस्तादिनी विशिष्ट चेष्टाद्वाराए स्पष्ट जातो एवो पापनो निषेध-त्याग करवो ए भावने ध्वनित करवा माटे आप्या छे. पापोनी गर्दा केवी रीते करवी १ तेनो प्रकार ग्रन्थकर्ता ज श्लोकना उत्तरभागथी व्यक्त करे छे. पूर्वकाले जे जे पापो सेव्या होय तेनी गर्दा करवी, एटले में पूर्वे अज्ञान - •
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy