SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 216
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२०५) खाले नहीं. अावा प्रकारचें जे वर्तन तेनुं नाम 'गंभीरता' कहेवाय. आ गंभीरतावाळो श्राशय उपरोक्त गुणवंतमां जो होय तो ज सत्य दाक्षिण्यपणु प्रकटयुं कहेवाय अर्थात् गंभीर आशय विशिष्ट दाक्षिण्यपणुं राखनारना हस्ते उपर कहेला जुल्मो के अनर्थो थवा पामे नहीं. गंभीर आशयनुं वर्णन अन्यत्र आ प्रमाणे कर्जा छे-“ यस्य प्रभावादाकाराः क्रोधहर्षभयादिषु । विकारा नोपलभ्यते तद्गांभीर्यमुदाहृतं" ॥१॥" जे गुणना प्रभावथी व्यक्तिगत चेष्टाओ अने हृदयना विकारो क्रोध, हर्ष अने भय आदिना अवसरे पण न जणाय तेनुं नाम. गांभीर्यपणुं कर्तुं छे." गंभीरप्रकृतिवाळो अने परना कार्यों करवामां दाक्षिण्यतावाळो कष्ट, दुःखो के लोकभय अथवा जनापवाद विगेरे भावी पडे तो अन्यना कार्यों करी आपवा माटे पोतानी पीठ घणी वखत फेरवी नांखे अथवा तो वचमांथी पडता मुके प्रावो अनुभव आपणने थाय छे. अतएव मूलकर्ता भगवान् उपरोक्त गुणवाळो केवो होय तेना माटे फरीने • धैर्यसचिव ' ए पदथी धैर्यतानी साथे ज दाक्षिण्यता धारनारो अहीं जणावे छे. परमार्थ ए केजेना हृदयनी अविचल वृत्ति एवी होय के-गमे तेवा उपद्रवो श्रावी पडे तो पण 'न्यायात्पथः प्रविचलन्ति पदं न धीराः' ए नियमानुसारे न्यायमार्गर्नु कदापि उल्लंघन करे नहीं, तेमज आरंभेल कार्यों वचमां पडता मूके पण नहीं. ए रीते गांभीर्यता, धैर्यता ए बने पवित्र आशयनी साथे जेमा दाक्षिण्यपणुं होय तो ज तेनुं सत्य दाक्षिण्यपणुं कहेवाय%;
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy