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पणानो त्याग तेज उदारता कही छे. अन्यथा धनवान ज धर्म पामी शके, धनहीन घनना अभावे उदारता क्यांथी करी शके १ तेथी करीने कदापि धनहीन धर्म न ज पामे ए सिद्ध थयुं, ए मान्यता अनिष्ट छे. श्रा हेतुथी ग्रंथकार 'औदार्य' ए पदनी विस्तृत व्याख्या करतां जगावे छे के तुच्छ स्वभावना त्यागथी हृदयना आशयनी विपुलता एटले टुंक विचारो, हलकी दृष्टि, मारा - तारापणानो अति श्राग्रह, लोभबुद्धि, जडता, अविनयपणुं - श्रा सर्व दुर्गुणो कंजुसाइना श्राधारे रहे थे, कंजुसाइ छुटवाथी ते दुर्गुणोनो पण नाश थाय अने विपुल विचारद्रष्टि जागवाथी औचितबुद्धि-विवेकमति धर्मकर्ममा दीर्घबुद्धि प्राप्त थाय छे ने छेवटे तेनाथी धर्मने जयपणे तथा व्यवहारने गौण मानी स्वबुद्धि, धन, विचारशक्ति विगेरेनो धर्मना माटे होम करी शके छे अने गमे ते कार्योंमां तुच्छताने मूकी गंभीरबुद्धिवाळो बने छे ते ज उदारता साची उदारता अहीं आपेक्षिक छे. तथा मानयोग्य जनो साथै उचित वृत्ति एटले उचित आचरण - अनुकूल वर्तन राखj. अहीं मानयोग्य जनो “ माता पिता कलाचार्य एतेषां ज्ञातयस्तथा । वृद्धा धम्र्म्मोपदेष्टारो गुरुवर्गः सतां मतः " ॥ १ ॥ माता, पिता, कलाचार्य - उपाध्याय, तथा ज्ञाति स्वजनो, वृद्धो अने धर्मोपदेशको ए सर्वे सज्जनोनो गुरुवर्गको छे.' तेमज दीनजनो, आधार विनाना दुःखी लोको तेने विषे पण उचितता - उदारता धारण करवी, अने कार्यविशेष दानादिमां उचित बुद्धि अतिशय राखवी ए सर्वे