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ज्यारे या प्रकारनो सिद्धि नामनो आशय प्राप्त थाय त्यारे ज पूर्वना त्रणे आशयो सफल याय, अन्यथा ते नकमा जेवा गणायः माटे उपरोक्त ऋण आशय पाम्या पछी या आशयने पामवा प्रयत्न सेववो उचित गणाय तथा सिद्धिना अंगना जे जे गुणो आर्यामां आचार्य श्रीए दर्शाव्या ते ते गुणोनी प्राप्ति थाय त्यारे ज सिद्धि नामना आशयनी सिद्धि थइ जाणवी.
पूर्व महात्मानुं नामस्मरण, देवेंद्र नरेंद्रोए करेल पूजा आदिनी स्तुति, प्राचीन मंदिरोनी पूजा विगेरे करवाथी पोतानुं समकित बराबर निर्मलतर करे छे. "
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ज्ञान-भावना
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तत्तं जीवाजीवा नायव्वा जाणणा इहं दिट्ठा | इह कजकरणकारगसि कारगसिद्धी इह बंधमुक्खो य ॥ १ ॥ बद्धो य बंधहेउ बंधण बंधष्फलं सुकहियं तु । संसारपर्वचोवि य इह यं कहि जिवरेहिं ॥ २ ॥ नाणं भविस्सई एवमाइया वायणाइयाय । सज्झाए आउत्तो गुरुकुलवासो य इय नाणे 11311 आ भूतलमां सत्य पदार्थनुं स्वरूप प्रतिपादन करनार केवल जिनप्रवचन ज छे, तेम ज साची श्रद्धा तेनाथी ज - त्माने मले छे कारण के जीव जीव आदि पदार्थनुं परमार्थ स्वरूप तेमां दर्शाव्युं छे; तथा मोक्षरूपी कार्य अने तेने साधनार सम्यक्त्व ज्ञान—चारित्ररूपी कारण, पुनः तेमां प्रवर्तनार साधु ए रीते कार्य, कारण तथा कारकनुं स्वरूप पण आत प्रवचनमां ज देखाडयुं छे. कर्मनो बंध, कर्मोनो नाश, आत्मा आठ