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________________ मंगलं चैव शास्त्रादौ वाच्यमिष्टार्थसिद्धये" ॥१॥ " पंडितोनी प्रवृत्ति माटे शास्त्रनी आदिमांज प्रयोजन, संबंध अने अभिधेयर्नु कथन करवू तथा इष्टार्थनो सिद्धि माटे शास्त्रनी आदिमां मंगल पण जणावयु" आ हेतुथी ग्रंथनी आदिमां चार पदार्थनो सयुक्तिक विचार विद्वानो माटे जणान्यो, ए हवे फरीने जणाववानी आवश्यक्ता नथी. कर्ताए प्रथम जणाव्यु हतुं के-"सत्य धर्मना परीक्षक एवा बाल, मध्यम आदि वर्गनुं स्वरूप कहशिं." ए कथनानुसारे तेनुं स्वरूप ग्रंथकर्ता अहीं बीजी भार्याथी शरु करे छे"प्रकरणारंभ" "बालः पश्यति लिंगं मध्यमबुद्धिर्विचारयति वृत्तम् । भागमतत्त्वं तु बुधः परीक्षते सर्वयत्नेन” ॥२॥ मूलार्थ-" बालजनो-मंदबुद्धिवानो मात्र बाह्यवेश देखीने, मध्यमबुद्धिक केवल आचार-वर्तन देखीने, अने तत्त्वज्ञजनो सर्वथा प्रकारे प्रागमतत्वनी ज परीक्षा करे छे." "जनतानी प्रकृति"
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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