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तत्समये स्थितिमत् ' समयः - अधिकृत धर्मस्थान संबंधी जे प्रतिज्ञा अर्थात् जेनाथी आत्माने धर्मलाभ थाय तेवा प्रकारनी धर्म संबंधी जे प्रतिज्ञा तेमां, जेम ' मांस अमुक काल या जींदगीपर्यंत न खावुं ' एवो धर्म जाणी आत्मा प्रतिज्ञापच्चख्खाण - सोगन - नियम करे तो या सोगन धर्मकारक होवाथी धर्म संबंधी प्रतिज्ञा कहेवाय. एटले आ अने तेवी ज अन्य धर्म्य प्रतिज्ञाओ स्वीकार्य पछी ते ते प्रतिज्ञाओ पालवामां अनुकूल एवा जे विचारो, अथवा स्वीकृत प्रतिज्ञाथी आत्मा गमे तेवा संयोगमां पण चलायमान न ज थाय. उपाध्यायजी महाराज कहे छे के-जे विषय संबंधी प्रतिज्ञा करी तत्विषयनी सिद्धि न थाय त्यां सुधी जेमके - ' हुं आजथी चार मास सुधी जिनपूजा कर्यो विना भोजन नहीं करीश. ' बस या प्रतिज्ञा स्वीकार्या पछी एवा प्रबल संयोगो श्रावी लागे छे के पूजा करवानो समय न ज मले; छतां श्रात्मा पूजाना संस्कारोथी एवो तो टेवाइ जाय के गमे तेटलो टाइम थइ गयो होय अने भूख्या मरवानो समय श्रावी लागे तथापि भूख्या मर ए स्वीकारी ले परन्तु प्रतिज्ञानो भंग न ज करे. प्रतिज्ञा पूरी न थाय त्यां सुधी आवी दृढता सर्वाशे कायम राखवाना जे शोभन विचारो ते अंतःकरणानी मक्कमता.
तदधः कृपानुगं चैव " - " प्रतिपन्न धर्मस्थानथी वंचित जनो पर अनुकंपा तत्पूर्वक. ' उपर दर्शाव्या प्रमाणे जे जे धर्मविषयक प्रतिज्ञाओ आपणे स्वीकारी होय तेने टका
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