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________________ ( १६३ ) तत्समये स्थितिमत् ' समयः - अधिकृत धर्मस्थान संबंधी जे प्रतिज्ञा अर्थात् जेनाथी आत्माने धर्मलाभ थाय तेवा प्रकारनी धर्म संबंधी जे प्रतिज्ञा तेमां, जेम ' मांस अमुक काल या जींदगीपर्यंत न खावुं ' एवो धर्म जाणी आत्मा प्रतिज्ञापच्चख्खाण - सोगन - नियम करे तो या सोगन धर्मकारक होवाथी धर्म संबंधी प्रतिज्ञा कहेवाय. एटले आ अने तेवी ज अन्य धर्म्य प्रतिज्ञाओ स्वीकार्य पछी ते ते प्रतिज्ञाओ पालवामां अनुकूल एवा जे विचारो, अथवा स्वीकृत प्रतिज्ञाथी आत्मा गमे तेवा संयोगमां पण चलायमान न ज थाय. उपाध्यायजी महाराज कहे छे के-जे विषय संबंधी प्रतिज्ञा करी तत्विषयनी सिद्धि न थाय त्यां सुधी जेमके - ' हुं आजथी चार मास सुधी जिनपूजा कर्यो विना भोजन नहीं करीश. ' बस या प्रतिज्ञा स्वीकार्या पछी एवा प्रबल संयोगो श्रावी लागे छे के पूजा करवानो समय न ज मले; छतां श्रात्मा पूजाना संस्कारोथी एवो तो टेवाइ जाय के गमे तेटलो टाइम थइ गयो होय अने भूख्या मरवानो समय श्रावी लागे तथापि भूख्या मर ए स्वीकारी ले परन्तु प्रतिज्ञानो भंग न ज करे. प्रतिज्ञा पूरी न थाय त्यां सुधी आवी दृढता सर्वाशे कायम राखवाना जे शोभन विचारो ते अंतःकरणानी मक्कमता. तदधः कृपानुगं चैव " - " प्रतिपन्न धर्मस्थानथी वंचित जनो पर अनुकंपा तत्पूर्वक. ' उपर दर्शाव्या प्रमाणे जे जे धर्मविषयक प्रतिज्ञाओ आपणे स्वीकारी होय तेने टका 46
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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