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________________ ( १५४) "माले मन, वचन, कायाना योगोनो निरोध करी शैलेशि "शार पामे छे एटले सपत्र कर्मथी छूठी सिद्धिस्थानमां चौद "राजलोकना मस्तक भाग पर बीराजी शाश्वत एवं सिद्धस्त" रूपवास करे छे." ए रीते उत्तरोत्तर पवित्र क्रियामां आगड " वधवाची प्रात्मा आत्मानुं पूर्ण कल्याण करे छे ए जवान " संक्षेपमां अमे पागल जणावी गया छीए. जेमो चारित्र" पतित थया होय तेना माटे पण कयु छ के-पच्छावि ते " पयाया, खिप्पं गच्छंति अमरभवणाई । जोस "पिओ तवो, संजमोअखंतीअभचेरं च "॥१॥ "जे प्रात्माओ प्रथम चारित्रभ्रष्ट थया होय परंतु पाछळथी “ सन्मार्गमां आरूढ थइ आराधना पामे छे तेत्रो मत्यु पामी देव" विमानोमां उपजे के के जेभोने तप, संयम, क्षमा, ब्रह्मचर्य " आदि गुणो पर प्रेम होय छे." परमार्थ ए के-उपरोक्त क्रियाथी छेवटे देवलोकमां पण आत्मा जाय छे. जेमो पा उपरोक्त पुष्टि-शुद्धिनो अनुबंध पामे तेमो मुक्ति पामे के ए भाव गत श्लोकना अंतमां कह्यो, तो भा 'अनुबंध' कोण न पामी शके १ तेनो खुलासो ग्रंथकर्ता अत्रे जणावे छे. मखिधानाद्याशय ___ संविद्व्यतिरेकतोऽनुबंधि तत् ॥ भिन्नग्रंथनिर्मल बोधवतः स्यादियं च परा॥३-५॥
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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