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(११८ ) मूलार्थ-अंतरात्माने विधेयकार्यमा प्रवर्तक अने निषिद्ध कार्योथी निवृत्तिकारक मा भूमंडलमां केवल सर्वज्ञोक्त प्रवचन ज उत्कृष्टतो छे, अने परमार्थतया धर्म पण श्रा मौनींद्रना प्रवचन सिवाय अन्यत्र नथी. " मननी स्थिति" ___स्पष्टीकरण-विशिष्ट पवित्र अथवा अपवित्र कार्योमा
आत्मा मननी प्रेरणा विना गति करवाने घणा अंशे असमर्थ ज बने छे, एटले प्रथम मन इच्छे छे ने पश्चात् प्रात्माने प्रेरे छे. यद्यपि असंज्ञी द्विद्रियादि जीवो मनहीन होवा छतां प्रत्येक क्रियाप्रो शरीरद्वारा ज करे छे, एवं संज्ञी आत्माओ पण घणी वार मन विना क्रियायो करता अनुभवाय छे; तथापि अहीं भावरूप मन कायम होवाथी मनपूर्वक ज क्रिया-प्रवृत्ति थाय छ एम समजवु. निदान के-प्रवृत्ति-निवृत्तिमां मुख्यतया मन ज कारणभूत छे.-" मन एव मनुष्याणां कारणं बंधमोक्षयोः" आचारांगसूत्रमा पण कर्तुं छे के-" जे आसवा ते परिसवा, जे परिसवा ते प्रासवा" "जे आश्रवो तेज निर्जराना कारणो थाय छे, अने जे निर्जराना कारणोछे तेज आश्रवना हेतुप्रो थाय छे." या कथनमां पण मननी ज मुख्यता दर्शावी छे. वळी सातमी नारकी योग्य कर्मों अने उंच देवत्व योग्य कर्मों पण आत्मा मननी सहायताथी ज बांधी शके छे. एटले मन विना आत्मा जे कांइ प्रवृत्ति करे ते मात्र सामान्य ज जाणवी, परंतु विशिष्ट प्रवृत्ति तो प्रात्मा