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________________ (४१) वाणी मिथ्याज . कारण के दोषवानने विषे निषेध व्यवस्था करवी तेनो हेतु ते कार्य परत्वे प्रतिबंध करवो उचित ने तेज वे. वली अनिष्ट त्यागपरत्वे अनुकुल शक्तिनो अनाव होयतो मौन राखqयोग्य जे. जे पुरुष विनयवान तेने विधि, निषेध विफलचे कारण के क्षेषना उदयनो असंनव जे. आवो अन्वयार्थ बे, तेनो विस्तरार्थ कहे. प्रतिबंध एटले व्याप्ति. अहिं प्रतिबंधाकार आवो जे. जेनामां जेनाथी दोषवालुं जणाय तेमां तेनो निषेध करवो. हवे तेमां एवो व्यभिचार आवे ने के, उष्ट एवा आहार दाननो निषेध करवाने व्याख्यान करवानी शक्तिनो अन्नाव होयतो तेने अनुकूलतानी विरूपताथी अटकावq. आ व्यनिचारमा कहे के जे अनिष्ट एवो त्याग होय ते परत्वे अननुस्थापन एटले अनुकूल शक्तिनो अनाव होयतो तेनाथी मौन राखq. ते विष श्री आचारांगमां कडं बे के, जे पुरुष बीजानी समान न होय तेने तर्कथी जाणी विधि, निषेध करवो. जो ते पुरुष उपर आपणुं सामर्थ्य न चाले तेम होयतो वाग्गुप्ति करवी, तेथी एवो सिद्धांत थयो के जे उष्ट होय तेने, जो शक्ति होयतो निषेध करवो अने प्रतिपदी अत्यंत उष्ट होयतो सिछांती तेने निषेध करे नहीं, परंतु वाग्गुप्ति राखी बेसे, अने तेम करे तेथी कांई दोष लागे नहीं. ते विषे सिद्धांतमांकयुं ले के " अवावाया उविउंति तंजहा अश्थिलोए पश्थिलोए" इत्यादि नावार्थ एवो ने के. " अस्ति ” “ नास्ति' " ध्रुव" " अध्रुव " इत्यादि त्रणसो त्रेस एकांत वादीने वादलब्धिवालो विचराण पुरुष प्रतिज्ञा, हेतु तथा दृष्टांतना उपन्यासथी
SR No.022204
Book TitlePratima Shatak
Original Sutra AuthorYashovijay Maharaj
AuthorBhavprabhsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages158
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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