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________________ (४०) कहेवामां दोष लागेने, तेवीरीते नक्तिकर्ममां पण विधि, निषेध करवामां दोष लागे. एq धारी प्रन्नु हा, ना नहीं कहेतां मौन धरी रह्या. आवी मुष्ट कुमतियोनी वाणी तदन मिथ्या ने.कारण के जे दोषवान् होय तेने प्रतिबंध करवानी जो शक्ति न होय तो उत्तमपुरुष मौन धारण करने, अथवा पुरुष जो विनीत होय तो तेने निषेध करवामां निष्फलतानो असंनव तथा शेषना उदयनो असंनव जे. विशेषार्थ-दानशील एवा श्रावको दान आपता होय तेमां जेम विधि, निषेध करवाथी दोष लागे तेथी मौन राखq योग्य बे, तेम नक्तिकर्म जे नृत्य जिनपूजा विगेरे तेमां निषेध वा विधि करवामां दोष लागे. के जे दोष बने रीते पासला जेवो जे. तेथी ते वखते मौन राखq योग्य . कारण के दाननो निषेध करे तो अंतराय थाय अने करवाने कहे तो जीव हिंसामा अनुमति थाय, तेथी साधुने मौन राखq उचित . ते विषे श्री सूत्रकृत सिद्धांतमां कह्यु बे के " जे अदाणं पसंसंति वहमिछति पाणीणं जे अणं पडिसेहंति वित्तियं करेंतिते"॥१॥ उहतोवितेण नासंति अश्थिवा पश्थिवा पुणो, आयं रहस्स हिच्चाणं निव्वाणं पाजणंति ते॥॥इति" नावार्थ एवोने के जे दाननी प्रशंसा करे,ते प्राणि वधने इच्छेने, अने जे दाननो निषेध करेने ते अंतराय बंध करेले; पण जे हा के ना नहीं कहेतां मौन राखे ते निर्वाण पामे बे. तेवीज रीते जक्तिकर्ममां पण जो निषेध करे तो नक्तिना नंगनो जय लागे, अने करवाने अनुमोदे तो घणा प्राणिनी हिंसानो लय, तेथी मौन राख, योग्य . आवी ते कुमतियोनी
SR No.022204
Book TitlePratima Shatak
Original Sutra AuthorYashovijay Maharaj
AuthorBhavprabhsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages158
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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